गुलाब सिंह लोधी

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गुलाब सिंह लोधी (1903 - 23 अगस्त, 1935) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे जिन्होने अपने प्राणों की बाजी अपनी भारत माँ को आजादी दिलाने के लिए लगा दी। लखनऊ के अमीनाबाद पार्क में झण्डा सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान झण्डा फहराने के दौरान अंग्रेजी पुलिस ने उन पर गोली चला दी और वे शहीद हो गये।

गुलाब सिंह लोधी का जन्म एक राजपूत किसान परिवार में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के ग्राम चन्दीकाखेड़ा (फतेहपुर चैरासी) के लोधी क्षत्रिय परिवार में सन् 1903 में ठाकुर श्रीराम रतनसिंह लोधी जी के यहां हुआ था। इनके पिताजी उन्नाव के एक प्रसिद्ध एवं प्रतिष्टित जमींदार थे

झण्डा सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेने उन्नाव जिले के कई सत्याग्रही जत्थे गये थे, परन्तु सिपाहियों ने उन्हें खदेड दिया और ये जत्थे तिरंगा झंडा फहराने में कामयाब नहीं हो सके। इन्हीं सत्याग्रही जत्थों में शामिल वीर गुलाब सिंह लोधी किसी तरह फौजी सिपाहियों की टुकडि़यों के घेरे की नजर से बचकर अमीनाबाद पार्क में घुस गये और चुपचाप वहां खड़े एक पेड़ पर चढ़ने में सफल हो गये। क्रांतिवीर गुलाब सिंह लोधी के हाथ में डंडा जैसा बैलों को हांकने वाला पैना था। उसी पैना में तिरंगा झंडा लगा लिया, जिसे उन्होंने अपने कपड़ों में छिपाकर रख लिया था। जैसे ही क्रांतिवीर गुलाब सिंह जी ने तिरंगा फहरा दिया और जोर-जोर से नारे लगाने लगे तिरंगे झंडे की जय महात्मा गांधी की जय, भारत माता की जय। अमीनाबाद पार्क के अन्दर पर तिरंगे झंडे को फहरते देखकर पार्क के चारों ओर एकत्र हजारों लोग एक साथ गरज उठे और तिरंगे झंडे की जय, महात्मा गांधी की जय, भारत माता की जय और इन गगनभेदी नारों से पार्क गूंज उठा।

झंडा सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान भारत की हर गली और गांव शहर में सत्याग्रहियों के जत्थे आजादी का अलख जगाते धूम रहे थे। झंडा गीत गाकर, झंडा ऊंचा रहे हमारा, विजय विश्व तिरंगा प्यारा, इसकी शान न जाने पावे, चाहे जान भले ही जाये, देश के कोटि कोटि लोग तिरंगे झंडे की शान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए दीवाने हो उठे थे।

समय का चक्र देखिए कि क्रांतिवीर गुलाब सिंह लोधी के झंडा फहराते ही सिपाहियों की आंख फिरी और अंग्रेजी साहब का हुकुम हुआ, गोली चलाओ, कई बन्दूकें एक साथ ऊपर उठी और धांय-धांय कर फायर होने लगे, गोलियां क्रांतिवीर सत्याग्रही गुलाब सिंह लोधी को जा लगी। जिसके फलस्वरूप वह घायल होकर पेड़ से जमीन पर गिर पड़े। रक्त रंजित वह वीर धरती पर ऐसे पड़े थे, मानो वह भारत माता की गोद में सो गये हों। इस प्रकार वह आजादी की बलिवेदी पर अपने प्राणों को न्यौछावर कर 23 अगस्त 1935 को शहीद हो गये।

क्रांतिवीर गुलाब सिंह लोधी के तिरंगा फहराने की इस क्रांतिकारी घटना के बाद ही अमीनाबाद पार्क को लोग झंडा वाला पार्क के नाम से पुकारने लगे और वह आजादी के आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय नेताओं की सभाओं का प्रमुख केन्द्र बन गया, जो आज शहीद गुलाब सिंह लोधी के बलिदान के स्मारक के रूप में हमारे सामने है। मानो वह आजादी के आन्दोलन की रोमांचकारी कहानी कह रहा है। क्रांतिवीर गुलाब सिंह लोधी ने जिस प्रकार अदम्य साहस का परिचय दिया और अंग्रेज सिपाहियों की आँख में धूल झोंककर बड़ी चतुराई तथा दूरदर्शिता के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। ऐसे उदाहरण इतिहास में बिरले ही मिलते है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अग्रणी भूमिका निभाने के लिए उनकी याद में केंद्र सरकार द्वारा जनपद उन्नाव जनपद में 23 दिसंबर 2013 को डाक टिकट जारी किया गया।[१]

सन्दर्भ

  1. "23rd December 2013: A commemorative postage stamp on Gulab Singh Lodhi". postagestamps.gov.in. मूल से 26 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 August 2015.

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बाहरी कड़ियाँ

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