चिरसम्मत अर्थशास्त्र

भारतपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

साँचा:पूंजीवाद साइडबार चिरसम्मत अर्थशास्त्र (क्लासिकल इकनीमिक्स) या चिरसम्मत राजनीतिक अर्थशात्र आर्थिक चिन्तन की वह परम्परा है जिसका विकास मुख्यतः इंग्लैण्ड में १८वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर १९वीं शताब्दी के मध्यकाल तक हुआ। इसके मुख्य विचारकों में आदम स्मिथ, जे बी से (Jean-Baptiste Say), डेविड रिकार्डो, थॉमस रॉबर्ट माल्थस, तथा जॉन स्टूवर्ट मिल थे। इन अर्थशास्त्रियों ने बाजारवादी अर्थस्त्र का जो आर्थिक सिद्धान्त दिया वह मुख्यतः स्व-नियमित प्रणाली (self-regulating systems) है जो उत्पादन तथा विनिमय के प्राकृतिक नियमों से शासित होता है। आदम स्मिथ ने इसी को 'अदृष्य हाथ' कहा था।

आदम स्मिथ द्वारा १७७६ में रचित द वेल्थ ऑफ नेशन्स को प्रायः चिरसम्मत अर्थशास्त्र का आरम्भ बिन्दु माना जाता है। इस पुस्तक में स्मिथ ने जो बात कही थी उसका सार यही था कि किसी भी देश की समृद्धि का निर्धारण इस बात से नहीं होती कि उस देश के पास कितना स्वर्ण जमा है बल्कि इस बात से होती है कि उस देश की राष्ट्रीय आय कितनी अधिक है।