त्वरक प्रभाव (अर्थशास्त्र)

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अर्थशास्त्र के सन्दर्भ में त्वरक प्रभाव (accelerator effect) वह सिद्धान्त है जो आय में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरुप बाजारवादी अर्थव्यवस्था में होने वाले धनात्मक परिवर्तन (positive effect) को बताता है। बाजारवादी अर्थव्यवस्था की वृद्धि को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में हुई वृद्धि की मात्रा से नापा जाता है। त्वरक के सिद्धान्त का प्रयोग सबसे पहले 1907 में अफ्तालियन ने किया।

त्वरक, पूंजी में होने वाले परिवर्तन तथा आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात है। त्वरक सिद्धान्त के अनुसार उत्पादन के स्तर के बढ़ने पर पूंजीगत पदार्थों में भी वृद्धि होगी। पूंजीगत पदार्थों में होने वाली वृद्धि त्वरक अथवा पूंजीगत उत्पाद अनुपात पर निर्भर करती है। पीटरसन के अनुसार, "त्वरक सिद्धान्त से ज्ञात होता है कि शुद्ध निवेश अर्थात् अर्थव्यवस्था की पूंजी के स्टॉक की परिवर्तन दर अन्तिम उत्पादन की परिवर्तन दर की फलन है।"

त्वरक सिद्धान्त के अनुसार उत्पादन के स्तर के बढ़ने पर पूंजीगत पदार्थों में भी वृद्धि होगी। पूंजीगत पदार्थों में होने वाली वृद्धि त्वरक अथवा पूंजीगत उत्पाद अनुपात पर निर्भर करती है। एक रुपये का अधिक उत्पादन करने के लिये यदि 3 रुपये की पूंजी की आवश्यकता पड़ती है तो पूंजी उत्पाद अनुपात 3ः1 अर्थात् 3 होगा। यदि हम 10 रुपये के मूल्य का अधिक उत्पादन करना चाहते हैं तो हमें 3×10=30 रुपये की पूंजी की आवश्यकता होगी।

त्वरक सिद्धान्त की मान्यताएँ

त्वरक का सिद्धान्त कुछ मान्यताओं पर आधारित है जो इस प्रकार हैः

1. अर्थव्यवस्था की सभी फर्में अपनी पूर्ण क्षमता तक उत्पादन कर रही है। इसलिए उद्योगों में अतिरिक्त उत्पादन क्षमता का अभाव पाया जाता है।

2. त्वरक का सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि त्वरक या पूंजी-उत्पाद अनुपात स्थिर है।

3. इस सिद्धान्त की यह भी मान्यता है कि मांग में स्थायी वृद्धि होनी चाहिए क्योंकि तभी फर्में अपनी पूंजी की स्टॉक बढ़ाने के लिए नया निवेश करेंगी।

4. फर्म उत्पादन क्षमता में आवश्यकतानुसार वृद्धि करती रहेगी।

5. पूंजीगत पदार्थ अविभाज्य है।

6. फर्मों को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए साख उपलब्ध है।

7. पूंजीगत पदार्थों के उद्योग स्थिर प्रतिफल के नियम के अनुसार उत्पादन कर रहे है।

8. त्वरक का सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि उत्पादन के साधनों की पूर्ति लोचदार होनी चाहिए।

त्वरक सिद्धान्त की आलोचनाएँ

1. त्वरक सिद्धान्त की यह आलोचना की जाती है कि यह स्थिर पूंजी-उत्पाद अनुपात की मान्यता पर आधारित है।

2. त्वरक सिद्धान्त एक अव्यवहारिक धारणा है क्योंकि यह इस मान्यता पर आधारित है कि अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त क्षमता का अभाव है।

3. त्वरक के सिद्धान्त की यह धारणा भी व्यवहारिक नहीं है कि पूंजीगत उद्योगों में साधनों की पूर्ति लोचदार होती है।

4. यह सिद्धान्त निवेशकर्ताओं के उचित व्यवहार की व्याख्या भी नहीं करता।

5. त्वरक का सिद्धान्त केवल एक सत्य मात्र है। इसके द्वारा आर्थिक समस्याओं के विश्लेषण में सहायता नहीं मिलती।

6. त्वरक के सिद्धान्त का केवल सीमित प्रयोग ही किया जा सकता है। मांग कम होने की दशा में यह सिद्धान्त काम नहीं करता।


सन्दर्भ