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साँचा:इस्लाम इस्लाम के अनुसार ईश्वर ने यह संसार बनाया और इंसान को अपने उत्तराधिकारी की हैसियत से यहाँ बसाया। उसके लिए जिंदगी बसर करने के सारे साधन दिए। उसे बुद्धि दी कि वह इन साधनों से किस प्रकार लाभान्वित हो। उसको इरादे और अमल की आजादी दी। इसके अलावा उसके मार्गदर्शन के लिए दो श्रृंखलाएँ जारी कीं- (1) अलकिताब (सभी आसमानी किताबें) (2) अर्रसूल (वे सारे पैगम्बर जो समय-समय पर धरती पर आए)।

पहले नबी (ईशदूत) इस धरती पर हजरत आदम (अ.स.) आए। उनको सरानदीप (श्रीलंका) में उतारा गया। वहाँ से चलकर भारत होते हुए वे अरब पहुँचे। इस प्रकार भारत वह पवित्र धरती है, जिसे सबसे पहले नबी के कदमों ने रौनक बख्शी। हजरत आदम (अ.स.) से लेकर आखरी नबी हजरत मोहम्मद स.अ. तक सबका पैगाम और मिशन एक ही था।

उसका नाम इस्लाम अर्थात ईश्वर के समक्ष अपने आपको नतमस्तक कर देना। इस तरह देखें तो इस्लाम-भारत का मूल धर्म है, जो सदा से चला आ रहा है- सनातन धर्म का अर्थ भी यही है। यह ईश्वर और बंदे को मिलाने वाला एक सीधा रास्ता-शाश्वत धर्म है। इस प्रकार ईश्वर समय-समय पर इंसानों के मार्गदर्शन के लिए अपने पवित्र बंदों का नबी और रसूल बनाकर भेजता रहा। ये पवित्र हस्तियाँ हर देश में और हर जाति में आईं। इन सबका पैगाम एक ही था।

ये धरती पर इस्लामी आंदोलन के नायक थे। वे लोगजब इस दुनिया से चले गए तो बाद के लोग उनकी शिक्षाओं को सुरक्षित न रख सके। वे सब अल्लाह के बंदे थे, मगर उनको बढ़ा-चढ़ाकर कुछ और ही बना दिया। उनकी शिक्षाएँ भी सुरक्षित न रह सकीं।

अब मानव समाज एक नए युग में प्रवेश करने वाला था। यह युग ज्ञान विज्ञान और तकनीक का युग था। इसकी जरूरत के अनुसार धरती पर स्वामी ने अपना अंतिम ईशदूत अरब की धरती पर भेजा और मोहम्मद स.अ. पर अपना अंतिम ईश ग्रंथ यानी कुरआन अवतरित किया। कुरआन द्वारा आपने मानव सुधार का आंदोलन शुरू किया।

आपके हमवतन आपको एक नेक शरीफ, सत्यवादी और अमानतदार युवक की हैसियत से जानते थे, किंतु जब आपने उनके समक्ष अपने रब का संदेश पेश किया तो उन्होंने आपका घोर विरोध किया। दमन चक्र चलाया। सच्चाई के रास्ते में बाधाएँ खड़ी कीं, लेकिन ईश्वरीय शक्ति से आपको सफलता प्राप्त हुई। इंसान का मन बदला, समाज बदला और देखते-देखते सारी दुनिया इस पैगाम से लाभान्वित हुई। उजाला फैलता ही गया। पवित्र कुरआन संसार के सारे इंसानों के लिए एक ईश्वरीय उपहार है। कुरआन की शिक्षा इंसान में जवाबदारी की भावना पैदा करती है। सत्ता एक पवित्र अमानत है, मौज-मस्ती का साधन नहीं। इस एहसास के साथ शासक पेबंद लगे कपड़े पहनकर कच्चे मकानों में जिंदगी बसर कर देते हैं। सरकारी चिराग का तेल अपनी बातचीत में जलने नहीं देते।

पवित्र कुरआन सारे इंसानों में समानता की शिक्षा देता है और सबको समान मानवाधिकार प्रदान कर सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय की एक अनूठी मिसाल कायम करता है। वह इंसान को जिम्मेदारियों से फरार करना नहीं सिखाता। समाज में रहकर जिम्मेदारियों का बोझ उठाते हुए ईश्वर की इबादत और इताअत करना सिखाता है।

वह समाज में सारे इंसानों को हक अदा करने की तालीम देता है। वह लिंगभेद को भी स्वीकार नहीं करता। मर्द और औरत जो भी अच्छे और भलाई के काम करेंगे, उनको पूरा-पूरा बदला मिलेगा। औरत को उसकी शारीरिक बनावट के हिसाब से घर संभालने की जिम्मेदारी दी गई, उस पर कमाई का बोझ नहीं, वह घर की रानी है। कमाने की जिम्मेदारी मर्द पर है। दोनों का कार्यक्षेत्र अलग-अलग है। उसकी शिक्षा यह है कि मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी दे दी जाए। वह शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य बताता है।

वह इंसान को धरती और आकाश में चिंतन का आह्वान करता है। कुरआन के अनुसार जो लोग सोच-विचार, चिंतन-मनन नहीं करते, वे पशुओं से भी बदतर हैं। ईश्वर ने धरती, आकाश और समुद्रों में जो खजाने रखे हैं, उन्हें खोजने की दावत देता है। वह कहता है कि तुम धरती पर चल-फिरकर देखो। कितनी बस्तियाँ वीरान पड़ी हैं।

कितने महल खंडहर हो गए हैं, क्योंकि यह लोग अपनी खुशहाली पर इतरा गए थे और ईश्वरीय मर्यादाओं को तोड़कर इन्होंने बगावत का रास्ता अपनाया था। मिस्र का फिरऔन, बाबुल का नमरुद और कितने ही शक्तिशाली सम्राट मिटा दिए गए। इस प्रकार मानव इतिहास से शिक्षा लेने की तालीम देता है। कुरआन स्वयं इंसान का अपना जिक्र है।

कुरआन बताता है कि तुम्हारा प्रभु अत्यंत दयावान और कृपाशील है। यह उनकी दया और कृपा ही है कि उसने तुम्हारे जीवन में मार्गदर्शन के लिए अपने पैगम्बर और ईशदूत भेजे। जिंदगी की राहों में तुम्हें अँधेरे में भटकने के लिए नहीं छोड़ दिया। इंसान ने अपनी जीवन यात्रा ईश्वरीय ज्ञान के प्रकाश में शुरू की थी, अँधेरे में नहीं।

इस प्रकार यह दिव्य ग्रंथ पग-पग पर मानवता का मार्गदर्शन करता है। जिस तरह अच्छे भोजन को रखने के लिए साफ-सुथरा कलाईदार बर्तन जरूरी है, उसी प्रकार इस ईश्वरीय संदेश को आत्मसात करने के लिए इंसान कोमन और शरीर से तैयार करना भी जरूरी है।

रमजान महीने में रोजा, नमाज, जकात आदि इबादतें इंसान में ईशभय (तकवा) पैदा करती है। उसको यह आभास दिलाती है कि तेरी सारी शारीरिक शक्तियाँ, बुद्धि, माल और दौलत अल्लाह का दिया है। इसको अल्लाह के हुक्म के अनुसार उपयोग में लाओगे तो अल्लाह तुमसे राजीहोगा। मरने के बाद जन्नात (स्वर्ग) में जगह देगा। बगावत और नाफरमानी करोगे तो जीवन के सुख-चैन से भी वंचित हो जाओगे। मरने के बाद जब उसके समक्ष पेश होओगे तो एक मुजरिम की हैसियत से सजा के पात्र बनोगे।