पराशर ऋषि

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साँचा:आधार साँचा:Infobox character पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है। येे महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं। पराशर शर-शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे। परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि-मुनियों में वे भी थे। वे छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे। जनमेजय के सर्पयज्ञ में उपस्थित थे। 

परिचय

■ श्री पराशर वन्दना -

"पराशरं नौमि गुरुं मुनीनाम्" (गुरु-स्वरूप मुनि पराशर को नमस्कार है।)

ब्रह्मनिष्ठोऽतितेजस्वी योगविद्यापरायणः। ऋषिर्जयति धर्मज्ञः पुण्यश्लोकः पराशरः॥१॥

  1. अर्थात - जो ब्रह्मनिष्ठ (ब्रह्मज्ञान से युक्त) हैं, जो अति तेजस्वी तथा योगविद्यापरायण (योग-विद्या में तत्त्पर तथा पूर्ण निष्ठा रखने वाला) हैं, ऐसे धर्मज्ञ एवं पुण्य-कीर्ति वाले (उत्तम आचरण वाले) ऋषि पराशर की जय हो।

पौत्रो मुनेर्वसिष्ठस्य शक्तेश्चैवात्मजस्थता। अदृश्यन्ती सुतो यश्चः मुनिर्वन्द्यः पराशरः॥२॥

  1. अर्थात - जो मुनि वसिष्ठ के पौत्र हैं, जो शक्ति मुनि के आत्मज तथा अदृश्यन्ती सुत हैं, (उन) मुनि पराशर को नमस्कार है।

मनस्विनं त्यागपरञ्च सौम्यं सुशोभितं ब्रह्मसुखानुभूत्या। भक्त्या ब्रुवन्तं श्रुतिशास्त्रसारं पराशरं नौमि गुरुं मुनीनाम्॥३॥

  1. अर्थात - जो मनस्वी हैं, त्यागपरञ्च और सौम्य गुणों से सुशोभित हैं, जिन्होंने ब्रह्मसुख को अनुभव किया है तथा जिन्होंने भक्ति-भाव से श्रुति-शास्त्र (वेद-शास्त्र) के सार अर्थात वेदान्तज्ञान को कहा है, ऐसे गुरु (स्वरूप) मुनि पराशर को मेरा नमस्कार है।

वेदज्ञं मन्त्रद्रष्टारं तपः सिद्धिप्रतिष्ठितम्। नमामि धर्मतत्वज्ञं महाभागवतं मुनिम्॥४॥

  1. अर्थात - वेदों को जानने वाले, मन्त्रद्रष्टा (मन्त्र का दर्शन करने वाला), तपस्वी, सिद्धि में प्रतिष्ठित रहने वाले, धर्म के तत्व को जानने वाले, #महाभागवत (परम् वैष्णव भक्त) मुनि (#पराशर) को मेरा नमस्कार है।

सत्यकामं ऋषिं शान्तं सत्यवत्यै वरप्रदम्। भक्तिज्ञानविरागाप्तं प्रणमामि पराशरम् ॥५॥

  1. अर्थात - जो सत्य-प्रेमी है, जो समस्त चिन्ताओं को त्यागकर शान्त हो गए हैं, और जो सत्यवती को वर प्रदान करने वाले हैं, जिन्होंने भक्ति, ज्ञान तथा विराग (राग-द्वेष रहित भाव) - को पूर्ण-रूप से प्राप्त कर लिया है, ऐसे ऋषि पराशर को मेरा प्रणाम है।

अष्टादशपुराणानां प्रणेता भारतस्य च। वेदव्यासः सुतो यस्य धन्यं तं नौम्यहं मुनिम् ॥६॥

  1. अर्थात - अठारह पुराणों के प्रणेता महामुनि वेदव्यास जिनके पुत्र हैं, जो धन्य और बड़े ही पुण्यशाली हैं, उन मुनि पराशर को मैं नमस्कार करता हूँ।

वेदान्तदर्शनस्रष्टा विष्णोरंशसमुद्भवः। चिरजीवी सुतो यस्य तं मुनिं प्रणतोऽस्मयहम् ॥७॥

  1. अर्थात - जो वेंदान्त-दर्शन (ब्रह्मसूत्र) के रचयिता हैं, और जिनके पुत्र भगवान विष्णु के अंश से उत्पन्न हुए हैं तथा चिरंजीवी हैं, ऐसे मुनि पराशर को मैं प्रणाम करता हूँ।

ज्ञानावतारस्य च जन्महेतुं सत्कर्म सद्धर्मविदां वरिष्ठम् । पराशरं सत्त्वनिधिं विधिज्ञं नमामि भक्त्या परमं महर्षिम् ॥८॥

  1. अर्थात - जो ज्ञान के अवतार हैं तथा सत्कर्म ही जिनके जन्म (के ऐश्वर्य, वैभव तथा सुख) - के कारण है, तथा जो सद्धर्म जानने वालों में श्रेष्ठ हैं, ऐसे सत्वनिधि (सत्वगुण से युक्त), विधिज्ञ (विधि को जानने वालों में श्रेष्ठ), परम् महर्षि पराशर को मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ।

पौत्रो हि यस्य प्रथितो विरक्तो ज्ञानाब्धिचन्द्रश्च शुकः शिवांशः। महामुनिर्भागवतोपदेष्टा पराशरं तं प्रणमामि भक्त्या ॥९॥

अर्थात - जो वैराग्य-युक्त (निरासक्त रहने वाले) है, जो (मस्तक) पर चन्द्र को धारण करने वाले शिव का अंश है, जो ज्ञान के समुद्र हैं और भागवत के उपदेशक हैं - वे महामुनि शुक जिनके पौत्र हैं, ऐसे पुण्यवान् मुनि पराशर को मैं भक्ति-भाव से प्रणाम करता हूँ।

अष्टोत्तरशतं जप्त्वा गायत्रीं वेदमातरम्। वन्दनां प्रपठेद् भक्त्या साधकः सिद्धिदायिनीम् ॥१०॥

अर्थात - एक सौ आठ बार वेदमाता गायत्री (-मन्त्र) का जप करके जो तपस्वी इस (पराशर) वन्दना को भक्ति-भाव से पढ़ता है, वह सिद्धि को प्राप्त करता है।

                         - #वैदिक_संग्रह

■"श्रीपराशरषट्कम्"

◆ "वन्दे पराशराचार्यं शक्तिपुत्रं जगद्गुरुम्" -

शिष्यं श्रीमद्वशिष्ठर्षे रघुवंशपुरोधसः। वन्दे पराशराचार्यं शक्तिपुत्रं जगद्गुरुम् ॥१॥

  1. अर्थात - रघुवंश के पुरोहित श्रीसम्पन्न (ज्ञानमूर्ति) ऋषि वशिष्ठ के शिष्य, मुनि शक्ति के पुत्र और सम्पूर्ण जगत के गुरु '#आचार्य_पराशर' को मैं वन्दन करता हूँ।

राममन्त्रप्रदं श्रीमद्राममन्त्रार्थ कोविदम्। वन्दे पराशराचार्यं शक्तिपुत्रं जगद्गुरुम् ॥२॥

  1. अर्थात - जो 'राम' नाम का (षडक्षर) मन्त्र (श्रीराम-मन्त्र - राम रामाय नमः) प्रदान करने वाले हैं, जो ज्ञान के समुद्र तथा श्री राम-मन्त्रार्थ (राम-मन्त्र के अर्थ) का बोध कराने वाले प्रकाण्ड विद्वान हैं - ऐसे मुनि शक्ति के पुत्र और समस्त संसार के गुरु '#आचार्य_पराशर' को मैं वन्दन करता हूँ।

रामसेवारतं शश्वद् वेदव्यासस्य सद्गुरुम्। वन्दे पराशराचार्यं शक्तिपुत्रं जगद्गुरुम् ॥३॥

  1. अर्थात - जो भगवान श्रीराम की सेवा में रत रहने वाला है, जो चिरस्थायी भगवान वेदव्यास के सद्गुरु हैं - ऐसे मुनि शक्ति के पुत्र और विश्वगुरु '#आचार्य_पराशर' को मैं वन्दन करता हूँ।

सिद्धेन्द्रं सिद्धिदं श्रीमद्वैष्णवधर्मबोधकम्। वन्दे पराशराचार्यं शक्तिपुत्रं जगद्गुरुम् ॥४॥

  1. अर्थात - जो अत्यन्त भाग्यशाली हैं, जो (समस्त प्रकार की) सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं, जो श्रीमद् वैष्णव धर्म का बोध कराने वाले और जगत् के गुरु हैं - ऐसे मुनि शक्ति के पुत्र '#आचार्य_पराशर' को मैं वन्दन करता हूँ।

वेदान्तममवेत्तारं विशिष्टाद्वैतवादिनम्। वन्दे पराशराचार्यं शक्तिपुत्रं जगद्गुरुम् ॥५॥

  1. अर्थात - विशिष्टाद्वैतवाद (विशिष्ट अद्वैतवाद) वेदान्त-दर्शन (ब्रह्मसूत्र) को जानने वाले मुनि शक्ति के पुत्र तथा जगद्गुरु '#आचार्य_पराशर' को मैं वन्दन करता हूँ।

मुनीन्द्रं रामनिष्ठं च जटोर्ध्वपुण्डधारकम्। वन्दे पराशराचार्यं शक्तिपुत्रं जगद्गुरुम् ॥६ ॥

  1. अर्थात - जो मुनियों में श्रेष्ठ हैं, जो भगवान श्रीराम में निष्ठा रखने वाले हैं, जो सिर पर जटा और मस्तक पर ऊर्ध्वपुण्ड्र को धारण करने वाले हैं - उन मुनि शक्ति के पुत्र एवं जगद्गुरु '#आचार्य_पराशर' को मैं वन्दन करता हूँ।
                      - #स्तोत्रकुसुमांजलि

★  भारतीय ज्योतिष के प्रवर्तकों में महर्षि पराशर अग्रगण्य हैं। महर्षि प्रोक्तं ग्रंथों में केवल इन्ही का सम्पूर्ण ग्रंथ  'बृहत्पराशरहोराशास्त्र' नाम से उपलब्ध हैं। अन्य प्रवर्तक ऋषियों के वचन तो इतस्ततः मिलते हैं, लेकिन किसी सम्पूर्ण ग्रंथ के अद्यावधि दर्शन नही होते हैं। यह बात पराशर  के मत की सर्व व्यापकता व सार्वभौमिकता का एक पुष्कल प्रमाण है। 'पराशरहोराशास्त्र' की गुणग्रहिता व सम्पूर्णता के कारण ही इनकी यह रचना सर्वत्र प्रचलित है।

★  ज्योतिष शास्त्र के सभी ग्रंथों पर यदि दृष्टि डाली जाये तो अनुभव होता है कि परवर्ती आचार्यों के मंतव्यों की मूल भित्ति पराशरीय विचार ही हैं। एक प्रकार से पराशर के ज्योतिषीय विचारों का प्रस्तार ही अवान्तर ग्रंथों में न्यूनाधिक रूप से देखने में आता है।

अतः कहा भी गया है -

तीर्थोदकं च वह्निश्च नान्यतः शुद्धिमर्हतः॥ (भवभूति)

अर्थात - जिस प्रकार वेदों का स्वयं प्रमाण स्वतः सिद्ध है, तीर्थ का जल व अग्नि स्वयं शुद्ध है, उन्हें शुद्ध करने, प्रमाणित करने व ग्राह्य बनाने के लिए किसी पवित्रीकरण की आवश्यकता नही होती उसी प्रकार पराशर के वचनों को प्रमाण रूप में उद्धृत करने की सर्वत्र परिपाटी है। पराशरीय कथनों व निर्णयों को प्रमाणित करने के लिए किसी अन्य ऋषि वाक्यों की आवश्यकता अकिंचित्कर ही है।

★  पराशर सम्प्रदाय या पराशरीय विचारधारा, विचारों की उस गंगा के समान है, जो समस्त भारत भूमि को अपने अमृत से आप्लावित करती हुई अपनी चरम गति या मंजिल पर पहुंचती है और अवान्तर अनेक विचारधारा रूपी नदियों को भी अपने भीतर समेटती चलती है। अतः 'पराशर मत्त' गंगानद है तो अन्य विचारधाराएं या मत्त नदियाँ ही है। यह एक अविच्छिन्न रूप से बहने वाली, सदानीरा नदी है। इस दृष्टि से देखने पर महर्षि पराशर का स्थान जैमिनी मुनि से ऊँचा ही सिद्ध होता है। जैमिनीय मत्त के पोषण की परंपरा हमें अवान्तर काल में अट्टू रूप में नही मिलती है।

जैमिनीय मत्त की सभी बातें पराशर सम्प्रदाय में सर्वतोभावेन समाहित हो गयी है, इसका आभास पराशरहोराशास्त्र को देखने से मिल जाता है।

★  वराहमिहिर जैसे आचार्य भी पराशर के सिद्धांतों के सामने नतमस्तक हैं। वे अपने ग्रंथों में बहुत पराशर मत्त का उल्लेख करके उसका अंगीकरण करते हैं। अतः पराशर सम्प्रदाय सम्पूर्ण भारत में चतुर्दिक, पुष्पित व पल्लवित होता रहा है तथा ज्योतिष के विषय में उनके द्वारा रचित 'बृहदपराशरहोराशास्त्र' अंतिम निर्णायक ग्रंथ माना जाता है। पराशर, 'फलित ज्योतिष'  के आधार स्तंभ हैं इसमें कोई संदेह नही है। 

  1. महर्षि पराशर का काल

★  पराशर का काल महाभारत काल के लगभग होना अनुमित है। कलियुग नामक कालखण्ड के प्रारम्भ में होने के कारण उत्तरोत्तर बलियस्त्व के सिद्धांत से कलियुग में पराशर मत्त की सर्वोपरि मान्यता स्पष्ट है।

★  कौटिल्य के अर्थशास्त्र के एक या दो स्थानों पर ऐसा आभास मिलता है कि उस समय वशिष्ठ व पितामह सिद्धान्त का प्रचार था अतः नारद, वशिष्ठ, पितामहादि ज्योतिष प्रवर्तकों के पश्चात पराशर का समय मानने से परम्परया इनका अस्तित्व कलियुग के आदि में प्रतीत होता है।

★  पराशरः का सृष्टि तत्व निरूपण सूर्य सिद्धांत के तदीय प्रकरण से मेल खाता है। अतः पौराणिक काल में आधुनिक मत्त से पाणिनि से पहले, चाणक्य से भी पहले, वैदिक रचना काल के बाद, पुराण युग में, महाभारत युद्ध की घटना के आसपास पराशर विद्यमान थे।

★  अर्थशास्त्र में पराशर का नामोल्लेख पाया जाता है। गरुड़ पुराण में पराशरस्मृति के श्लोकों का संग्रह किया गया है।

★  बृहदारण्यकोपनिषद व तैत्तिरीयारण्यक में व्यास व पराशर के नाम आते हैं।

★  यास्क ने अपने निरुक्त में पराशर के मूल का भी उल्लेख किया है। ये कृष्णद्वैपायन व्यास के पिता थे तथा इनके पिता का नाम 'शक्ति' था। वराह ने पराशर को शक्तिपुत्र या शक्ति पूर्व कहा है।

★  अग्निपुराण में स्पष्टतया इन्हें शक्ति का पुत्र ही कहा है। यही पराशर मत्स्यगंधा सत्यवती पर मोहित हुए थे तथा सत्यवती के गर्भ से पराशर पुत्र कृष्णद्वैपायन व्यास उत्पन्न हुए थे, यह सुविदित ही है।

★  इन्ही पराशर ने कलियुग में व्यवस्था बनाये रखने के लिए 'पराशरस्मृति' या 'द्वादशाध्यायी' धर्मसंहिता की रचना की थी।

कृते तु मानवो धर्मस्त्रेतायां गौतमः स्मृतः। द्वापरे शंखलिखितः कलौ पराशरः स्मृतः॥

★  कृष्णद्वैपायन व्यास जी जब कुछ मुनियों को बदरिकाश्रम(बद्रीनाथ तीर्थ)में स्थित अपने पिता पराशर के पास ले गए थे तब पराशर ने उन्हें वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था परक ज्ञान दिया था।

★  वराह ने इन्ही शक्तिपुत्र पराशर को होराशास्त्र का प्रवक्ता भी माना है।वराहमिहिर पांचवी सदी में हुए हैं, ऐसा माना जाता है। अतः प्रत्येक परिस्थिति में आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व पराशर के समय की निचली सीमा है।

★  श्रीमद् भागवत में एक स्थान पर विदुर व मैत्रेय का वार्तालाप उल्लिखित है। इससे भी मैत्रेय, पराशर व महाभारत की कड़ियाँ मिलती प्रतीत होती है। मैत्रेय को होराशास्त्र बताने वाले महर्षि पराशर महाभारत काल में वृद्धावस्था या चतुर्थाश्रम प्राप्त ऋषि थे। महाभारत का समय परम्परया कम से कम 3000 वर्ष पूर्व माना जाता है। अतः पराशर 2-3 सहस्त्राब्दियों पूर्व भारत में हुए थे।

★  'पराशर तन्त्र' का उल्लेख भट्टोत्पल ने अनेक स्थानों पर किया है। उन्होंने बृहज्जातक की टीका में 'पाराशरी संहिता' देखने व पढ़ने की बात स्वीकार की है। 'पराशर तन्त्र' नाम से जो उद्धरण दिए गए हैं, उनका विषय तन्त्र अर्थात सिद्धांत ज्योतिष से कम व संहिता से अधिक मेल खाता है।

  1. शिव भक्त पराशर वेदव्यास पराशर

★ भगवान ब्रह्मा जी नारद जी से कहते हैं-

ब्रह्मा जी बोले - हे नारद! अब हम् शिवजी के छब्बीसवें अवतार की कथा कहते हैं, तुम मन लगाकर सुनो।

★ भगवान शिव का छब्बीसवाँ अवतार -

छब्बीसवें द्वापर में पराशर ने व्यास का जन्म लिया, जो हमारे प्रपौत्र थे तथा शक्ति से उत्पन्न हुए थे। उनके समान शिव भक्त कोई नही हुआ। उन्होंने वेद के १. ऋक् २. यजु ३. साम एवं ४. अथर्वण ये चार भाग किये तथा उनकी शाखाओं को बढ़ाया। तत्पश्चात अठारह पुराण बनाये, क्योंकि कलियुग के प्रवेश से सांसारिक जीवों की बुद्धि नष्ट हो गयी थी। उन्होंने वेद की रीतियाँ युक्ति पूर्वक पुराणों में इस प्रकार मिला दी, जिससे लोग प्रसन्न हो। जिस प्रकार की कोई वैद्य कड़वी औषधि न देकर मीठी औषधि द्वारा रोगी को प्रसन्न करता है। उन्होंने अन्य व्यासों की अपेक्षा जो कि पहले हुए थे, अधिक अच्छे पुराण बनाये। यद्यपि हमने तथा व्यास (पराशर) ने अनेकों प्रकार के प्रयत्न किए, जिससे कि व्यासमत्त प्रसिद्ध हो परंतु हमारा यत्न निष्फल हुआ और किसी ने भी पुराणों को न पढ़ा। तब व्यास पराशर ने चिंतित होकर शिवजी का ध्यान किया तथा स्तुति करते हुए उनसे कहा कि हे प्रभो! द्वापर युग व्यतीत हो गया तथा कलियुग आ गया। यद्यपि मैंने वेद के आशय पुराणों में प्रकट कर दिए, परंतु कलियुग के प्रभाव से इन्हें कोई नही समझता, प्रबृत्ति मार्ग को बढ़ रहा है, परंतु निब्रति की समाप्ति हो रही है। हे प्रभो! हे भक्तवत्सल!  किसी ने भी पुराणों को नहीं छूआ, अतः मेरा मत्त प्रसिद्ध नही होता इसलिए आप मेरी प्रार्थना सुनकर सहायता कीजिये तथा मेरे धर्म को दृढ़ कीजिये।आप अवतार लेकर मेरे मत की वृद्धि करें। हे नारद! मेरे प्रपौत्र व्यास पराशर की इस प्रार्थना को शिवजी ने स्वीकार कर लिया तथा छब्बीसवें द्वापर के अंत में और कलियुग के प्रारंभ में "#सहिष्णु" नामक अवतार ग्रहण कर लिया तथा १. उलूक २. विद्युत ३. सम्बल तथा ४. अश्वलायन ये चार शिष्य उत्पन्न किये तथा उन्हें योग का ज्ञान सिखाया तथा उन्होंने योग को प्रकट किया।उस योग को संसारी जीवों ने बड़े यत्न से सीखा। फिर उन्होंने वेद एवं पुराणों से अच्छे धर्म एवं मत्त प्रकट किए। शिवजी के ये चार शिष्य आश्रम जानने वाले, योगाभ्यासी तथा निष्पाप हुए।  हे नारद ! इस प्रकार भगवान शिव ने अपने इन चार शिष्यों सहित योग को प्रकट कर पुराणों को प्रसिद्ध किया तथा व्यास(#पराशर)जी को प्रसन्न किया।


  1. भगवान_श्री _पराशर_दोहा -
  1. वशिष्ठ जैगीषव्य नामा, देवल कपिल रहे सुखधामा।

सनंदन सनातन हि कहेउ वोढु पंचशिख  नाम रहेऊ ॥११॥ शुक्र चवन नर शक्रि हि, #पराशर हि व्यास।

  1. शुकदेव जैमिनी ऋषि, मार्कण्डेय हरिदास ॥१३॥

पौलस्त्य शरद्वान, अगस्त्य अरिष्टनेमि हि। शमीक हि बुद्धिमान, मांडव्य पैल पाणिनी यह ॥१५॥  भागुरि याज्ञवल्क्य हि कहाये, #द्वैपायन पिप्पलाद रहाये।

  1. मैत्रेय करख उपमन्यु  जेहा, गोरमुख अरुणि और्व तेहा ॥१६॥

कक्षिवान् भरद्वाज कहिजे, वेदशिर शंकुवर्ण लहीजे। शौनक #परशुराम कहावे, इंद्रप्रमद और्व कवष रहावे ॥१८॥

            - #श्रीहरिचरित्रामृतसागर


नमो वसिष्ठाय महाव्रताय पराशरं वेदनिधिं नमस्ये। नमोऽस्त्वनन्ताय महोरगाय, नमोऽस्तु सिद्धेभ्य इहाक्षयेभ्यः ॥१०॥ नमोऽस्त्वृषिभ्यः परमं परेषां देवेषु देवं वरदं वराणाम् । सहस्त्रशीर्षाय नमः शिवाय सहस्त्रनामाय जनार्दनाय ॥११॥

अर्थात - (यह मंत्र इस प्रकार है) - महान व्रतधारी वसिष्ठ को नमस्कार है, वेदनिधि पराशर को नमस्कार है, विशाल सर्प-रूपधारी अनन्त(शेषनाग)को नमस्कार है, अक्षय सिद्धगण को नमस्कार है, ऋषि वृन्द को नमस्कार है तथा परात्पर, देवाधिदेव, वरदाता परमेश्वर को नमस्कार है एवं सहस्त्र मस्तक वाले शिव को और सहस्त्रों नाम धारण करने वाले भगवान जनार्दन को नमस्कार है। - महाभारतम्


तपोनिधि, तपोमूर्ति भक्तवत्सल पराशर का आश्रम - बद्रिकाश्रम

ततस्ते ऋषयः सर्वे धर्मतत्वार्थकांक्षिणः।

ऋषिं व्यासं पुरस्कृत्य गता बदरिकाश्रमं ॥५॥

नानापुष्पलताकीर्णम् फलपुष्पैरलंकृतम्।

नदिप्रस्त्रवणोपेतं पुण्यतीर्थोपशोभितम् च॥६॥

मृगपक्षिनिनादाढ़यं देवतायनावृतम्।

यक्षगन्धर्वसिद्धैश्च नृत्यंगीतैरलंकृतम् ॥७॥

तस्मिन्नृषिसभामध्ये शक्तिपुत्रं पराशरम्।

सुखासीनं महातेजा मुनिमुख्यगणावृतम् ॥८॥

कृतांजलिपुटो भूत्वा व्यासस्तु ऋषिभि: सह।

प्रदक्षिणाभिवादैश्च स्तुतिभि: समपूज्यत्॥९॥

अर्थात - तब धर्म के तत्व की अभिलाषा करने वाले वह सम्पूर्ण ऋषि यह सुनकर श्री व्यास जी को आगे कर #बदरिकाश्रम को गये।#यह #आश्रम अनेक भाँति पुष्पों_की_लताओं_से_पूर्ण, #फल-#पुष्पों से शोभायमान, #नदी_और_झरनों से विभूषित, #पवित्र_तीर्थों से शोभायमान, #मृग_और_पक्षियों के शब्द से शब्दायमान, #देवमन्दिरों से आवृत, #यक्ष_और_गंधर्वों के नृत्यगान से #शोभायमान, और #सिद्धगणों से अलंकृत था। #उस_आश्रम में #शक्ति_ऋषि के पुत्र #मुनिवर_पराशर #प्रधान_प्रधान_मुनियों_से_युक्त_होकर

  1. ऋषियों_की_सभा_में_सुखपूर्वक_बैठे_थे। इस समय में #व्यास जी ने ऋषियों के साथ जाकर हाथ जोड़कर उनकी #प्रदक्षिणा_कर #प्रणामपूर्वक_स्तुति_करके_पूजन_किया। पराशर स्मृति

■  संस्कृत साहित्य में 'पराशर' यह नाम आदरणीय ही नही अपितु अत्यंत प्राचीन भी है। संसार की प्राचीनतम पुस्तक ऋग्वेद में वशिष्ठ, शतायु के साथ पराशर का भी नाम आया है।

◆   प्रये गृहात् ममदुस्त्वाया पराशरः शतायुर्वशिष्ठ ।।

●  संदर्भ - द्वितीय खंड ऋग्वेद मंडल 7, अध्याय 2 सूक्त 18, मंत्र 21)

●  इन तीनों ने राजा सुदास की विजय कामना के लिए इंद्र से प्रार्थना की थी।

■  ऋग्वेद के प्रथम खंड, प्रथम मंडल, पंचम अध्याय सूक्त 65-73 (पृष्ठ 121 से 133 तक) तक के सूक्तों के द्रष्टा (निर्माता), दिव्य द्रष्टा, वैदिक द्रष्टा,भविष्य द्रष्टा अधभूतकर्मा भगवन् महर्षि पराशर ही माने जाते है।

■   एक अन्य उल्लेख के आधार पर पराशर नाम वाली एक वेद शाखा भी है।            ●   संदर्भ -  काठक अनुक्रमणिका, 'इस्तु' 3/460, पृष्ठ 7

■  निरुक्त में पराशर  के मूल पर लिखा पाया जाता है।

◆  द्वात्रिंशच्छ्तपदेषु पराशरः ●   संदर्भ - निरुक्त (निघण्टु) 4/3

■  पाणिनि मुनि ने अपने व्याकरण शास्त्र में 'पराशर' को भिक्षु-सूत्र प्रणेता के रूप में उद्धृत कर पाराशर्यों का भी उल्लेख किया है।

◆  "पाराशर्येण प्रोक्तं भिक्षु-सूत्रमधीयते। पाराशरिणो भिक्षवः। तथा 'पाराशर्यशिलालिभ्यां भिक्षुनट सूत्रयोः'। ●   संदर्भ  - अष्टाध्यायी -  4/3/110

■  रामायण - वाल्मीकि रामायण में वशिष्ठ के पौत्र तथा शक्ति के पुत्र के रूप में पराशर की चर्चा हुई है। ■  महाभारत - आदिपर्व, शांतिपर्व, अनुशासन पर्व में पराशर को लेकर पर्याप्त उल्लेख मिलता है। महाभारत में ही शक्ति पुत्र(शाक्तेय) पराशर के साथ पराशर नामक एक सर्प की भी चर्चा की गई है। ◆  पराशरस्तरुण को मणि: स्कंधस्तारुणि:। इति नामा....। ● संदर्भ -(महाभारत आदिपर्व, अध्याय 57, श्लोक 19)

■  कौटिल्य अर्थशास्त्र - कौटिल्य अर्थशास्त्र में पराशर एवं पाराशर्य नाम से छः बार उल्लेख हुआ है। ◆  'साधारण एष दोष इति पराशरः' ●  संदर्भ - कौटिल्य अर्थशास्त्र - 1.8 पृ.34, तथा 1/15/59, 1/17/68, 2/17/119, 8/1/572, 8/3/583

■  ब्रह्मांडपुराण, मत्स्यपुराण, वायुपुराण, देवीभागवतपुराण और विष्णु आदि पुराणों में पराशर को एवं उनके मतों को अंकित किया गया।

●  ब्रह्मांडपुराण - खंड 2, अध्याय 32 श्लोक 115, 2/33/3, 2/35/24,29, 4/4/65-66, 1/1/9, 3/8/11, आदि। ●  वायुपुराण - अध्याय -  23,59,61,65,77 ●  मत्स्य-पुराण - अध्याय - 14,53,145 ●  देविभागवतपुराण - प्रथम एवं द्वादश स्कन्ध

■  वराहमिहिर -

●  भारतीय ज्योतिष-शास्त्र में आचार्य वराह-मिहिर का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन्होंने अनेक पूर्ववर्ती आचार्यों के साथ अपनी संहिता में पराशर के नाम और सिद्धांतो को उद्धृत किया है। रोहिणी योग पर लिखते हुए उन्होंने गर्ग और कश्यप के साथ पराशर की चर्चा की है। वाराही संहिता के टीकाकार भट्टोत्पल ने पराशरीय संहिता को उद्धृत करते हुए लिखा है - धनिष्ठाद्यात्  पौष्ठार्द्धांतं चरः शिशिरः। वसंत पौषणार्द्धात् रोहिणयाम्।सौम्यादाश्लेषार्द्धनतं ग्रीष्म:। प्रावृडाशलेषार्द्धत् हस्तान्तम्। चित्राद्यात ज्येष्ठार्द्धत् श्रवणांतम्।

●  वराहमिहिर के टिकाकर भट्टोत्पल ने पराशर का ऋतु-अवस्थान विषय-पाठ उद्धृत किया है।

■  सिद्धेश्वर शास्त्री- सिद्धेश्वर शास्त्री चित्राव के अनुसार पराशर आयुर्वेदाचार्यों में आयुर्वेदशास्त्र प्रणेता हैं।


पृथिव्युवाच : -

तथानुकम्पमानेन यज्वनाथामितौजसा ।।७६।। पराशरेण दायादः सौदासस्याभिरक्षितः । सर्वकर्माणि कुरुते शूद्रवत् तस्य स द्विजः ।।७७।। सर्वकर्मेत्यभिख्यातः स माम रक्षतु पार्थिवः।।

अर्थात - पृथ्वी देवी कहती है - इसी प्रकार अमित शक्तिशाली यज्ञपरायण महर्षि पराशर ने दयावश सौदास के पुत्र की जान बचाई है, वह राजकुमार द्विज होकर भी शूद्रों के समान सब कर्म करता है। इसलिए 'सर्वकर्मा' नाम से विख्यात है। वह राजा होकर मेरी रक्षा करे।

                               -  पृथ्वी देवी (महाभारत - शांति पर्व)

'पराशर' शब्द का अर्थ

'पराशर' शब्द का अर्थ है - 'पराशृणाति पापानीति पराशरः' अर्थात् जो दर्शन-स्मरण करने से ही समस्त पापों का नाश करता है, वही पराशर है।

  1. आचार्य_सायण_ने_पराशर_शब्द_की #व्याख्या इस प्रकार की है -

हे पराशर परागत्य शृणाति हिनस्ति शत्रुन् इति पराशर:॥१॥

अर्थात - शत्रुओं को परास्त करके उन्हें नष्ट कर देने वाले को #पराशर कहते हैं।

                                - सायण भाष्य

  1. निरुक्त में एक अन्य स्थल पर #पराशर की #दूसरी_व्याख्या इन शब्दों में विवेचित है-

पराशातयिता यातुनाम् इति पराशरः।... परा परितः यातूनां... रक्षसाम्।  ...शातयिता विनाशकः॥३०॥(निरुक्त ६.३०)

अर्थात - जो चारों ओर से राक्षसों का विनाश करने में समर्थ हो वह #पराशर है।

           - निरुक्त/ निघण्टु ( #आचार्य_यास्क)


परं मातुर्निमातुरनिजायायददरं तदयं यतः। ऋचमुच्चार्य निर्भिद्य निर्गात स पराशरः ।।१।।

अर्थात - यह माता के उदर से वेद ऋचाओं को बोलते हुए निकाला था, अतः इसका नाम पराशर रखा गया।

★★★ परस्य कामदेवस्य शरः सम्मोहनादयः। न विद्यन्ते यतस्तेन ऋषिरुक्तः पराशरः।।२।।

अर्थात - कामदेव के सम्मोहन, उन्मादन, शोषण, तापन, स्तम्भन, इन पांच बाणों का प्रभाव अपने पर न होने देने के यतन के कारण ऋषियों ने भी इन्हें "पराशर" ही कहा।

★★★ पराकृताः शरा यस्मात् राक्षसानां वधार्थिनाम्। अतः पराशरो नामः ऋषिरुक्तः मनीषिभिः।। पराशातयिता यातूनाम् इति पराशरः।                   ।।३,३१/२।।

अर्थात - वध की इच्छा रखने वाले राक्षसों के बाणों  को इन्होंने परे कर दिया। अतः बुद्धिमानों  ने इनका नाम "पराशर"नाम कहा।

★★★ परासुः स यतस्तेन वशिष्ठः स्थापितो मुनिः। गर्भस्थेन ततो लोके पराशर इति स्मृतः ।।४।। अर्थात - उस बालक ने गर्भ में आकर परासु (मरने की  इच्छा वाले ) वसिष्ठ मुनि को पुन: जीवित रहने के लिये उत्‍साहित किया था; इसलिये वह लोक में "पराशर" के नाम से विख्‍यात हुआ।

★★★ पराशृणाती पापानीति पराशर: ।।५।। अर्थात - जो दर्शन स्‍मरण करने मात्र से ही समस्‍त पाप-ताप को छिन्‍न-भिन्‍न कर देते हैं वे ही पराशर हैं।

★★★ अतः प्राण-परित्याग करने की इच्छा वाले वशिष्ठ का आधार होने के कारण, या काम-बाण प्रभावों को परास्त करने के कारण, या फिर शरों से दूर ले जाकर इनका रक्षण करने के कारण अथवा शत्रुओं का पराभव करने वाला होने के कारण इस बालक का नाम #पराशर ही व्यवहार में आया। ॥


वेदों में वर्णित #पराशर_शाबर_मंत्र -

वेदों में वर्णित #सत्यवादी_मुनिश्रेष्ठ_महामना #पराशर के गुणों का वर्णन -

अपराजितो जितारातिः सदानन्दों दयायुतः गोपालो गोपतिर्गोप्ता कलिकालपराशरः॥५८॥

अर्थात - शत्रुओं के द्वारा अजेय, शत्रुओं को जीतने वाले, सदा आनन्दित रहने वाले, दयालु, पृथ्वी का पालन करने वाले, इंद्रियों के स्वामी, भक्तों के रक्षक #कलिकाल(कलियुग) के #मुनिश्रेष्ठ_पराशर अर्थात् कथा वाचकों के उत्पादक #महामुनि_पराशर ।

  1. अथर्ववेद_में_महर्षि_पराशर_का_देवत्व -

★  अथर्ववेद में ऋषिश्रेष्ठ पराशर का देवत्व निर्दिष्ट है। अथर्ववेद में वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ,  तपोनिधि, भगवान पराशर की गणना ऋषियों में न होकर देवताओं में कई गयी है।

★  ऋषि-  अथर्ववेद के अधिकांश सूक्तों के ऋषि 'अथर्वा'(अविचल, प्रज्ञायुक्त-स्थिरप्रज्ञ) ऋषि हैं। अन्य अनेक ऋषियों के सूक्तों के साथ भी अथर्वा का नाम संयुक्त है। जैसे अथर्वाचार्य, अथर्वाकृति, अथर्वाङ्गिरा, भृगवंगीरा ब्रह्मा आदि।

★  अथर्वेद में इन निम्नलिखित सभी को ऋषित्व प्राप्त है -

१. भृगु अर्थवण  २. वशिष्ठ   ३. अगत्स्य  ४. अंगिरा  ५. अथर्वा,  ६. भृगु   ७. जमदग्नि, ८. कश्यप  ९. कण्व, १०.  विश्वामित्र ..... आदि।

★  अथर्वेद में निम्नलिखित सभी को देवत्व प्राप्त है -

देवता - अथर्ववेद में देवताओं की संख्या अन्य वेदों की अपेक्षा दोगुनी से भी अधिक है। 

१.  अंश  २. अग्नि ३. अग्नाविष्णु ४. अरुंधती नामक औषधि  ५. अश्विनीकुमार  ६. इन्द्र ७. कश्यप ८.चंद्रमा ९.धन्वंतरि १०. #पराशर

★  अथर्ववेद  के इस मंत्र में #पराशर से प्रार्थना की गई है की वे शत्रु को नष्ट करें।

  1. अथर्ववेद -

(६५- शत्रुनाशक सूक्त)

【ऋषि - अथर्वा, देवता - #पराशर, छन्द-१ पथ्यापंक्ति, २-३ अनुष्टुप】

अव मन्युरवायताव बाहू मनोयुजा।

  1. पराशर त्वं तेषां पराञ्चम् शुष्ममर्दयाधा नो रयिमा कृधि ॥१॥

अर्थात - (शत्रु के) क्रोध एवं शस्त्रास्त्र दूर हों। शत्रुओं की भुजाएं अशक्त एवं मन साहसहीन हों। हे दूर से ही शर-संधान में निपुण देव (#पराशर)! आप उन शत्रुओं के बल को परांगमुख करके नष्ट करें तथा उनके धन हमें प्रदान करें।




परासुः स यतस्तेन वशिष्ठः स्थापितो मुनिः।
गर्भस्थेन ततो लोके पराशर इति स्मृतः ॥ महाभारतम् १। १७९। ३
परासोराशासनमवस्थानं येन स पराशरः। आंपूर्ब्बाच्छासतेर्डरन्। इति नीलकण्ठः ॥

बाल्य और शिक्षा

पराशर के पिता का नाम शक्तिमुनि था और उनकी माता का नाम अद्यश्यन्ती था। शक्तिमुनि वसिष्ठऋषि के पुत्र और वेदव्यास के पितामह थे। इस आधार पर पराशर वसिष्ठ के पौत्र थे।

सुतं त्वजनयच्छक्त्रेरदृश्यन्ती पराशरम्।
काली पराशरात् जज्ञे कृष्णद्वैपायनं मुनिम् ॥ इत्यग्निपुराणम् ॥

शक्तिमुनि का विवाह तपस्वी वैश्य चित्रमुख की कन्या अदृश्यन्ती से हुआ था। माता के गर्भ में रहते हुए पराशर ने पिता के मुँह से ब्रह्माण्ड पुराण सुना था, कालान्तर में उन्होंने प्रसिद्ध जितेन्द्रिय मुनि एवं युधिष्ठिर के सभासद जातुकर्ण्य को उसका उपदेश किया था। पराशर बाष्कल के शिष्य थे। ऋषि बाष्कल ऋग्वेद के आचार्य थे। याज्ञवल्क्य, पराशर, बोध्य और अग्निमाढक इनके शिष्य थे। बाष्कल ने ऋग्वेद की एक शाखा के चार विभाग करके अपने इन शिष्यों को पढ़ाया था। पराशर याज्ञवल्क्य के भी शिष्य थे।

राक्षस-सत्र

इक्ष्वाकुवंशी अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण के पौत्र सुदास हुए थे। उनके पुत्र वीरसह (मित्रसह) हुए, जो सुदास-पुत्र होने से सौदास भी कहलाते थे। महर्षि वसिष्ठ के शाप से वे नरभोजी राक्षस कल्माषपाद हुए। राक्षस रूप कल्माषपाद ने शक्ति सहित वसिष्ठ के सौ पुत्रों को खा लिया। इससे दु:खार्त वसिष्ठ ने आत्महत्या के कई प्रयत्न किये, पर सफल नहीं हुए। अतः शक्ति की पत्नी अदृश्यन्ती को साथ लेकर वे हिमालय पर पहुँचे। एक बार वसिष्ठने वेदाध्ययन की ध्वनि सुनी तो चकित रह गये, इसलिए कि वेद-पाठ करने वाला कोई वहाँ दिखाई नहीं दे रहा था। तब अदृश्यन्ती ने उन्हें बता दिया कि शक्ति का पुत्र मेरे गर्भ में है और उसी के वेदाध्ययन की ध्वनि सुनी गयी है। यह सुनकर वसिष्ठ इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने मृत्यु की इच्छा छोड़ दी। जन्मोपरांत पराशर ने सुन लिया कि राक्षस कल्माषपाद ने उनके पिता शक्ति को खा लिया था। यह सुनते ही उनके मन में राक्षसों के प्रति घोर विरोध उत्पन्न हुआ और उन्होंने संसार से राक्षसों का अन्त कर डालने का निश्चय किया। इस आशय से उन्होंने अपना राक्षस-सत्र आरंभ किया जिसमें राक्षस मरते जा रहे थे। कई राक्षस स्वाहा हो गये तो निऋति की आज्ञा पाकर महर्षि पुलस्त्य पराशर के पास गये और राक्षसवंश को बचाये रखने के लिए राक्षस-सत्र पूर्ण करने की प्रार्थना की। उन्होंने अहिंसा का उपदेश दिया। व्यास ने भी पराशर को समझाया कि बिना किसी दोष के समस्त राक्षसों का संहार करना अनुचित है, इसलिए आप अपना यज्ञ पूर्ण करें क्योंकि साधुओं का भूषण क्षमा है -

अलं निशाचरर्दर्ग्धर्दी नैश्यकारिभिः।
सत्रं ये विरमत्ये तत्क्षमाजरा हि साधनः॥ [१]

पुलस्त्य तथा व्यास के सदुपदेशों से प्रभावित होकर पराशर ने अपना राक्षस-सत्र पूर्ण किया। उन्होंने अग्नि को हिमालय के समतल प्रदेश में रख दिया। पुलस्त्य ने राक्षस-सत्र पूर्ण करने के उपलक्ष्य में उन्हें कई प्रकार के आशीर्वाद दिये। उन्होंने बताया कि क्रोध करने पर भी तुम ने मेरे वंश का मूलोच्छेद नहीं किया। उसके लिए तुम को एक विशेष वर प्रदान करता हूँ। तुम पुराण संहिता के रचयिता बनोगे।[२][३] देवता तथा परमार्थतत्त्व को यथावत् जान सकोगे और मेरे प्रसाद से निवृत्त और प्रवृत्तिमूलक धर्म में तुम्हारी बुद्धि निर्मल एवं असंदिग्ध रहेगी -

सन्ततेर्न ममोच्छेदः क्रुद्धेनापि यतः कृतः।
त्वयः तस्मान्महाभाग ददम्यन्यं महावरम्॥
पुराणसंहिताकर्ता भवान्वत्स भविष्यति।
देवता पारमार्थ्य च यथाद्वेत्यते भवान्॥
प्रवृत्ते च निवृत्ते च कर्मण्यस्तमला मितः।
मत्प्रसादादसन्दिग्धा यव वत्स भविष्यति॥ [४]

विवाह और सन्तति

नर्मदा के उत्तरी तट पर पराशर ने पुत्र-प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की और पार्वती ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर उनकी इच्छा पूर्ण होने का आश्वासन दिया।

चेदिराज नामक उपरिचर वसु एक बार मृगया के लिए निकला, तो सुगंधित पवन, सुंदर वातावरण आदि से प्रभावित राजा को अपनी पत्नी याद आयी और उसका वीर्य-स्खलन हुआ। उसे अपनी पत्नी तक पहुँचाने की, राजा ने एक श्येन पक्षी से प्रार्थना की। श्येन जब उसे ले जा रहा था, उसे मांसपिंड समझ कर मार्ग में एक दूसरा श्येन पक्षी हड़पने लगा। तब वह वीर्य कालिन्दी के जल में जा गिरा, जिसे ब्रह्मा के शापवश मछली के रूप में कालिन्दी में रहती आ रही अद्रिका नामक अप्सरा ने निगल लिया। फलतः उस मछली के गर्भ से एक पुत्री और एक पुत्र का जन्म हुआ। पुत्र का नाम मत्स्य पड़ा, जो विराट राजा बना। पुत्री का नाम काली रखा गया और वह एक धीवर के यहाँ पालित हुई। काली या मत्स्यगंधा जब किंचित् बड़ी हुई, तब वह अपने पालित पिता की नाव चलाने के काम में सहायता करती थी। एक प्रातःकाल पराशर यमुना पार करने के लिए आये। धीवर कन्या काली ने ही नाव खेयी। उसे देख पराशर मुनि मुग्ध हो गये और उससे कामपूर्ति की प्रार्थना की। दूसरा कोई न देख पाए, इसके लिए मुनि ने कुहासे की सृष्टि की और उसके साथ संभोग किया, जिसके फलस्वरूप पराशर-पुत्र व्यास का जन्म हुआ।[५]

पराशर के अनुग्रह एवं आशीर्वाद से काली का कौमार रह गया। पराशर के आश्लेष से काली सुवास से युक्त सत्यवती हुई। सत्यवती को योजनगंधा होने का वरदान दिया। यही सत्यवती कालांतर में शंतनु की पत्नी हुई, जिसके गर्भ से चित्रांगद एवं विचित्रवीर्य का जन्म हुआ। विचित्रवीर्य ने काशीराज-पुत्री अंबिका तथा अंबालिका को ब्याहा, पर वह निस्संतान मर गया। तब सत्यवती के आग्रह पर अंबिका तथा अंबालिका के साथ व्यास का नियोग हुआ और फलस्वरूप पांडु एवं धृतराष्ट्र का जन्म हुआ। पराशर-पुत्र व्यास वेदों का विभाजन करके वेदव्यास कहलाये। महाभारत एवं पुराणों के रचयिता होने का श्रेय भी व्यास को दिया जाता है।

पराशर के उलूक आदि पुत्र भी थे। भविष्यपुराण के अनुसार उलूक की बहन उलूकि का पुत्र वैशेषिक शाखा का प्रवक्ता कणाद हुआ।

कथाएँ

मनोजव की कथा

एक बार चंद्रवंशी राजा मनोजव को शत्रुओं ने देश पर आक्रमण करके परिवार सहित भगा दिया। तब वे सेतुबंध के समीप एक वन में पहुँचे। भूखे-प्यासे पुत्र तथा पत्नी को देखकर राजा मूच्छित हो गये। तभी उस मार्ग पर निकले हुए पराशर मुनि वहाँ पहुंचे। पति की मूच्छा पर विलाप करती रानी सुमित्रा को उन्होंने आश्वस्त किया तथा अपने हाथ से राजा का स्पर्श किया। राजा होश में आया। उसने मुनि को प्रणाम किया। तब पराशर ने शत्रुओं पर विजय पाने के लिए सेतुबंध के मंगलतीर्थ में स्नान करने का उसे उपदेश दिया। मुनि ने उसे श्रीरामजी के एकाक्षर मंत्र का उपदेश किया। उसका विधिवत् जप करने पर राजा के सम्मुख युद्ध के लिए आवश्यक धनुष-बाण, रथ, सारथी सब स्वयं प्रकट हुए। मुनि पराशर ने पवित्र जल से राजा का अभिषेक किया तथा दिव्यास्त्रों की प्रयोग-विधि समझायी। राजा ने पुनः शत्रु पर विजय पायी और अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त किया।

जनक से संवाद

पराशर ने महाराज जनक से मिलकर अध्यात्म के संबंध में चर्चा की। एक बार राजा जनक ने कल्याणप्राप्ति का उपाय जानना चाहा, तो पराशर ने सदाचार एवं धर्मनिष्ठा का उपदेश दिया।

धर्म एव कृतः श्रेयानिहलोके परत्र च।
तस्माद्धि परमं नास्ति यथा प्राहुर्मनीषिणः॥ [६]

अर्थात् मनीषियों का कथन है कि धर्म के विधिपूर्वक अनुष्ठान से इहलोक एवं परलोक मंगलकारी बनते हैं। उससे बढ़कर श्रेयस्कर दूसरा कोई साधन नहीं है। सत्संग को पराशर ने महत्त्व दिया।

गोत्रप्रवर्तक

इनसे प्रवृत्त पराशर गोत्र में गौर, नील, कृष्ण, श्वेत, श्याम और धूम्र छह भेद हैं। गौर पराशर आदि के भी अनेक उपभेद मिलते हैं। उनके पराशर, वसिष्ठ और शक्ति तीन प्रवर हैं (मत्स्य., 201)।

रचनाएँ

ऋग्वेद में पराशर की कई ऋचाएँ (1, 65-73-9, 97) हैं। विष्णुपुराण, पराशर स्मृति, विदेहराज जनक को उपदिष्ट गीता (पराशर गीता) जो महाभारत के शांतिपर्व का एक भाग है, बृहत्पराशरसंहिता आदि पराशर की रचनाएँ हैं। भीष्माचार्य ने धर्मराज को पराशरोक्त गीता का उपदेश किया है (महाभारत, शांतिपर्व, 291-297)। इनके नाम से संबद्ध अनेक ग्रंथ ज्ञात होते हैं :

1. बृहत्पराशर होरा शास्त्र,

2. लघुपाराशरी (ज्यौतिष),

3. बृहत्पाराशरीय धर्मसंहिता,

4. पराशरीय धर्मसंहिता (स्मृति),

5. पराशर संहिता (वैद्यक),

6. पराशरीय पुराणम्‌ (माधवाचार्य ने उल्लेख किया है),

7. पराशरौदितं नीतिशास्त्रम्‌ (चाणक्य ने उल्लेख किया है),

8. पराशरोदितं, वास्तुशास्त्रम्‌ (विश्वकर्मा ने उल्लेख किया है)।

पराशर स्मृति

पराशर स्मृति एक धर्मसंहिता है, जिसमें युगानुरूप धर्मनिष्ठा पर बल दिया गया है। कहते हैं कि, एक बार ऋषियों ने कलियुग योग्य धर्मों को समझाने की व्यास से प्रार्थना की। व्यासजी ने अपने पिता पराशर से इसके संबंध में पूछना उचित समझा। अतः वे मुनियों को लेकर बदरिकाश्रम में पराशर के पास गये। पराशर ने समझाया कि कलियुग में लोगों की शारीरिक शक्ति कम होती है, इसलिए तपस्या, ज्ञान-संपादन, यज्ञ आदि सहज साध्य नहीं हैं। इसलिए कलिकाल में दान रूप धर्म की महत्ता है।

तपः परं कृतयुगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते।
द्वापरे यज्ञमित्यूचुर्दानमेकं कलौयुगे॥ [७]

कलियुग में पराशर प्रोक्त धर्म को विशेष मान्यता प्राप्त हुई है। कहा गया है कि -

कृतेतु मानवो धर्मस्त्रेतायां गौतमः स्मृतः।
द्वापरे शंखलिखितः कलौ पराशरः स्मृतः॥ (पराशर स्मृति 1.24)

अर्थात् सत्ययुग में मनु द्वारा प्रोक्त धर्म मुख्य था, त्रेता में गौतम की महत्ता थी। द्वापर में शंख-लिखित मुनियों द्वारा कहे गये धर्म की प्रतिष्ठा थी। पर कलिकाल में पराशर से निर्दिष्ट धर्म की प्रतिष्ठा है। पराशर मुनि अहिंसा को परमाधिक महत्त्व देते हैं। पराशरस्मृति में गोमाता कोे न केवल अवध्य, अपि तु पूजनीय भी कहा गया है। वैसे ही वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रमों का विशद वर्णन उनके स्मृति ग्रंथ में है। ग्रंथ के अन्त में योग पर ज़ोर दिया गया है। पराशर ने आयुर्वेद एवं ज्योतिष पर भी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।

शास्त्रों में उल्लेख

  1. "सुतं त्यजनयच्छक्लेरदृश्यन्ती पराशरम्। काली पराशरात् जज्ञे कृष्णद्वैपायनं मुनिम्॥" (अग्निपुराणम्)
  2. अयं हि द्वादशाध्यायात्मिकां धर्मसंहितां कृतवान्।
  3. सा च कलिकर्तव्यधर्मविषया। यदुक्तं तत्रैव।
  4. "कृते तु मानवो धर्मस्त्त्रेतायां गौतमः स्मृतः।
  5. द्वापरे शंखलिखितः कलौ पाराशरः स्मृतः॥"
  6. अयं खलु मातुस्यगन्धायां सत्यवत्यां वेदव्यासमुत्पादितवान्। ऐसा दो स्थानों पर कहा गया है। प्रथमबार देवी भागवत में और द्वीतयबार स्कन्धपुराण के २ अध्याय में।
  7. परान् आशृणाति हिनस्तीति। शृ गि हिंसे+अच्।" नागभेदः। यथा। महाभारत में १। ५७। १८।
  8. "वराहको वीरणकः सुचित्रश्चित्रवेगिकः। पराशरस्तरुणको मणिस्कन्धस्तथारुणिः॥"

साँचा:ऋषि

 इन्हें भी देखें

महर्षि पराशर स्तुति" -

( अदृश्यन्ती नन्दन शाक्तेय पराशर )

जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर । जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥१॥

विष्णु रूप तुम वंश दिवाकर। वेद विज्ञ समृति रचनाकार । जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥२॥

महातपस्वि महर्षि पराशर । देव पुरोहित मुनि पराशर। जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥३॥

ब्रह्मा पुत्र वशिष्ठ गुरु ज्ञानी । जिनके पुत्र शक्ति महा प्रानि। जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥४॥

जन्म लिया उनके घर आकर । धन्य अदृश्यन्ती सुत पाकर। जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥५॥

पितृ वधिक रूधिर संहारक । अन्य अनेक असुर विदारक । जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥६॥

धन्य हुए, ब्रह्मावर पा कर । परम भक्त शिव भक्त सुधाकर । जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥७॥

जनक द्वैपायन वेदव्यास के । कारण वेद समृति प्रकाश के । जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥८॥

महान पौत्र शुकदेव गुणाकर । आदि पुरूष निजवंश विभाकर । जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥९॥

पुन्य क्षेत्र पुष्कर बहु चचिर्त। दर्शन कर देवगण हर्षित। जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥१०॥

हिमवान् प्रदेश में वास किया, मांडव्य नगर को कृतार्थ किया । पराशर धार में तपस्या करके, अदभुत,अनुपम  झील का निर्माण किया । पराशर झील का सौंदर्य अतुलनीय, तैरता भूखंड है आश्चर्य इसका। जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर  ॥११॥

वास किया आश्रम रचनाकर । धन्य हुआ कुल गौरव पाकर। जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥१२॥

युग बीते संतति पथ भटकी। द्वेष,राग,मद,मोह में अटकी। जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥१३॥

पुनः करपुर प्रकाश जलाकर। कल्याण करो अमृत वर्षा कर। जयति जयति महर्षि पराशर । सकल लोक वंदित पराशर ॥१४॥

पराशर ऋषि" वंदना -

पौत्रो मुनेर्वषिष्ठस्य शक्तै श्वात्मजस्थता । अदृष्यन्ती सुतो यश्च मुनिर्वन्द्यः पराशर:॥ वैदज्ञं मन्त्रद्रष्टारं तपः सिद्धिप्रतिष्ठितम। नमामी धर्मतत्वज्ञं महाभगवतं मुनिम ॥ सत्यकामं ऋषिं शान्तं सत्यवत्यै वरप्रदम भक्तिज्ञानविरागाप्तं प्रणमामि पराशरम् ॥ ★★★★★★★★★★★★★★★★★

★★★★★★★★★★★★★★★★★ "पराशर गाथा" -

( अदृश्यन्ती नन्दन शाक्तेय पराशर )

हमें गर्व है हम सब,पराशर की संतान हैं। जिसने विश्व को ज्ञान दिया उस ऋषिवर को प्रणाम है। हमें गर्व है हम सब,पराशर की संतान हैं ॥१॥

गुरु वशिष्ठ के कुल में, पराशर का अवतार हुआ। पराशर के तप से, ऋषि शक्ति का उधार हुआ। शक्ति पुत्र पराशर का ऋषियों में ऊंचा नाम है। हमें गर्व है हम सब,पराशर की संतान हैं ॥२॥

अरूंधती के पौत्र बने, अदृश्यन्ती पुत्र कहलाए। वेदव्यास के पिता बने, शुकदेव पौत्र कहलाए। ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ बने, वेदों का पूर्ण ज्ञान है। हमें गर्व है हम सब,पराशर की संतान हैं ॥३॥

वास्तु,ज्योतिष और आयुर्वेद के ग्रंथों का विस्तार किया। धर्मशास्त्र की रचना कर जनमानस का कल्याण किया ।

"पराशर स्मृति ग्रंथ", "बृहत्पराशर होराशास्त्र कालजयी ग्रन्थ", "पराशर गीता" ऋषिवर की पहचान है। हमें गर्व है हम सब,पराशर की संतान हैं ॥४॥

पुष्कर जी में वास किया, देवों का तीर्थ कहलाया। ब्रह्मा जी ने इसी जगह अपना स्थान बनाया। तीर्थराज पुष्कर का सरोवर इस भूमि की शान है। हमें गर्व है हम सब,पराशर की संतान हैं ॥५॥ ★★★★★★★★★★★★★★★★★

★★★★★★★★★★★★★★★★★ पराशर जन्म कथा - (अदृश्यन्ति नन्दन शाक्तेय पराशर)

व्याकुल हुए वशिष्ठ मुनि, जब नष्ट हुआ कुल सारा। वंश चलाने वाला धरती पर, बचा न कोई सहारा ।।१।।....

हुई देववाणी गगन से, दुखियों को धीर बंधाया। माँ के गर्भ से उस बालक ने, वेद श्लोक सुनाया ।।२।।....

यह तपस्वी बालक वंश का, ऊँचा नाम करेगा। अपने पिता से बढ़कर ज्ञानी और पराक्रमी बनेगा ।।३।।....

जन्म हुआ पराशर जी का, वशिष्ठ जी फूले नही समाये। साधु संत अन्य जीव सभी, वहाँ दर्शन करने आये ।।४।।....

तेज चमकता था चेहरे पर, दिव्य शक्ति की भांति। दर्शन पाते ही विचलित मन को, मिलती थी शांति ।।५।।....

छोटी-सी आयु में ऋषि ने अपना ज्ञान बढ़ाया। बने तपस्वी और पराक्रमी, चमत्कार दिखलाया ।।६।।....

अपने पिता के देवलोक से, माँ को दर्शन कराए। शक्ति ऋषि की मुक्ति हेतु, सभी अनुष्ठान कराए ।।७।।....

जाना भेद पिता की मृत्यु का, क्रोध ऋषि को आया। राक्षस-विहीन करूँ धरा, यह संकल्प उठाया ।।८।।....

यज्ञ किया प्रारम्भ, राक्षसों का विनाश करने को। व्याकुल हुए पुलत्स्य ऋषि, वशिष्ठ जी को जाकर बतलाया ।।९।।....

तब वशिष्ठ जी ने, पराशर जी को समझाया। बुरे के साथ बुरे न बनो, उन्हें यह संदेश सुनाया ।।१०।।.... ★★★★★★★★★★★★★★★★★

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  1. पराशर #व्रत -
  1. महर्षि #पराशर के अनुसार #पराशर #गोत्र के सभी लोग #पराशर #व्रत लेते हैं, जो इस प्रकार है -

१.  मैं किसी को भी पीड़ा नही दूंगा; २.  मैं दूसरों की,किसी की भी संपति ग्रहण नही करूँगा; ३.  मैं सदा सत्य ही बोलूंगा; ४.  मेरे पास कभी कुछ देने योग्य होगा तो उपयुक्त समय आने पर उसे मैं किसी सुपात्र को ही दान करूँगा; ५.  वासना और लोभ से मैं सदा मुक्त रहूंगा; ६.  देवताओं और पूर्वजों (पितरों)की मैं सदा पूजा करूँगा; ७.  मेरा जीवन श्रुति को समर्पित रहेगा; ८.  श्रुति को धारण करने वाले देवताओं की कृपा का मैं आकांक्षी रहूँगा,क्योंकि श्रुति ही ऋत को - ब्रह्मांड की नियम-व्यवस्था को - धारण करती है। ★★★★★★★★★★★★★★★★★

★★★★★★★★★★★★★★★★★ "महर्षि पराशर" सिद्धांत -

१.   सिद्धांत तात्विक हो, व्‍यवहारिक हो और कौटुम्बिक जीवन में  चरितार्थ हो।

२.   सत्‍य सिद्धांतों को पूरा करने के लिए व्रत लिये जावें।  इसके लिए बुद्धि, चित्त, शरीर शक्ति को मजबूत करें।

३.   बुद्धि, वित्त, शरीर शक्ति – ये तीनों मिलकर एक उद्देश्‍य  में लगें, अलग-अलग दिशा में न जावें।

४.   जीवन पुष्टिमय हो। वसुंधरा पर स्‍वर्ग लाने के लिेए जीवन को  निरंतर पुष्‍ट बनाने की आवश्‍यकत है।

५.   क्षत्रियों में शूरता व प्रतिकार क्षमता हो। यानि आज के  संदर्भ में सेना में व जनता में इन गुणों का विकास होना चाहिए, जिससे कोई भी दुष्‍ट  आंख उठाकर न देख् सके।

६.   प्रभावी नेतृत्‍व होना चाहिए।

७.   ज्ञानी, शक्तिशाली और वैभवशाली पुरुषों को मिलकर समाज को सब  प्रकार से शक्तिशाली बनाना चाहिए, समाज में ज्ञान हो, शक्ति और वैभव हो।

८.   परमात्‍मा के प्रति प्रीति, भीति और आत्‍मीयता बढ़ाएं। ★★★★★★★★★★★★★★★★★

★★★★★★★★★★★★★★★★★ "महर्षि पराशर"का संदेश -

"महर्षि पराशर" का संदेश था कि पृथ्‍वी पर स्‍वर्ग लाया जा सकता है। उन्‍होंने कहा, "स्‍वर्ग मानव की मानसिक प्रवृत्ति है, यदि  मानसिक प्रवृत्ति को विशिष्‍ट ढंग से प्रवर्तित किया जाए तो यहीं पर स्‍वर्ग है।"

पराशरमतं पुण्यं पवित्रं पापनाशनम्। चिन्तितं ब्राह्मणार्थाय धर्मसंस्थापनाय च ।।३६।।

अर्थात - परमपवित्र सम्पूर्णपापों का नाश करने वाला मुनि पराशर जी का मत (चारों वर्णों  का आचार जो) ब्राह्मणों के निमित्त तथा धर्म की स्थापना करने के लिए चिंतवन किया गया है (उसी को श्रवण करो)।                                                         Or

अर्थात -  मैं जो कह रहा हूँ  विचार कर रहा हूँ, यह पुण्य और पवित्रता को देने वाला है। पाप का नाश करने वाला है। धर्म की स्थापना और ब्राह्मणों के लिए है।

          -  महर्षि पराशर (पराशर स्मृति, प्रथमोऽध्यायः)

★ इस प्रकार हम् कह सकते हैं कि पराशर स्मृति का विशेष्य/उद्देश्य है, पुण्य और पवित्रता को देना, पाप का नाश करना, ब्राह्मणादि, समाज के हर मुखिया द्वारा मनुष्य के जीवन में आचार व्यवस्था लाना और शाश्वत धर्म की स्थापना करना तथा लोगों को देहान्तर स्वर्ग की प्राप्ति करवाना।

सन्दर्भ

  1. विष्णुपुराणम्, 1.1.20
  2. Rgveda 1.73.2 Translation by H.H.Wilson
  3. Wilson, H. H. The Vishnu Purana: A System of Hindu Mythology and Tradition.
  4. विष्णुपुराणम्, 1.1.25-27
  5. तस्यास्तु योजनाद्गन्धमाजिघ्रन्त नरा भुवि।।
    तस्या योजनगन्धेति ततो नामापरं स्मृतम्।
    इति सत्यवती हृष्टा लब्ध्वा वरमनुत्तमम्।।
    पराशरेण संयुक्ता सद्यो गर्भं सुषाव सा।
    जज्ञे च यमुनाद्वीपे पाराशर्यः स वीर्यवान्।।
    स मातरमनुज्ञाप्य तपस्येव मनो दधे।
    स्मृतोऽहं दर्शयिष्यामि कृत्येष्विति च सोऽब्रवीत्।।
    एवं द्वैपायनो जज्ञे सत्यवत्यां पराशरात्।
    न्यस्तोद्वीपे यद्बालस्तस्माद्द्वैपायनःस्मृतः।।
    पादापसारिणं धर्मं स तु विद्वान्युगे युगे।
    आयुः शक्तिं च मर्त्यानां युगावस्थामवेक्ष्यच।। महाभारत 1,64,124-129

  6. (महाभारत, शांतिपर्व 290.6) 
  7. (पराशर स्मृति 1.23)