मूर्च्छा आना

भारतपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

लेखकः डाक्टर अपूर्व पौराणिक

मूर्च्छा आना

कई बातें जिनके बारे में हम मान कर चलते हैं कि हमें उनका अर्थ पता है, जब उसकी परिभाषा करने की बात आती है तो बगलें झांकने लग जाते हैं। यही बात मूर्च्छा के बारे में है। मूर्च्छा या बेहोशी समझने के लिये पहले सामान्य अवस्था होश या चेतनता को जान लेना उचित होगा। होश या चेतनता वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति को स्वयं का तथा वातावरण का पूरा ज्ञान या भान रहता है और उसकी जरूरतों के मुताबिक यह प्रतिक्रिया करता है। यही भान यदि समाप्त हो जावे या कम हो जावे और व्यक्ति स्वयं की या वातावरण की जरूरतों के मुताबिक काम न करे तो उसे अचेतन कहा जा सकता है। इसी अचेतनता को हम मूर्च्छा, बेहोशी या कॉमा आदि नामों से पुकारते हैं। आम लोगों की बोलचाल में मूर्च्छा की कल्पना थोडी खास किस्म की होती है। मानों कोई व्यक्ति मुर्दा समान, आँखें बन्द, बोलचाल बन्द, हाथ-पांव ढीले, प्रतिक्रिया विहीन हो। परन्तु दृष्टि से अचेतनता या मूर्च्छा के और भी अनेक स्तर व रूप हो सकते हैं।

मूर्च्छित अवस्था में लक्षण

वैसे तो यह काम डाक्टर का है फिर भी आम आदमी कुछ खास बातों पर गौर करके मूर्च्छा की मौजूदगी, उसकी गम्भीरता और उसके कारणों का थोडा बहुत अनुमान लगा सकता है। सबसे पहले यह तय करना होगा कि जगाने के प्रयत्नों का मरीज पर क्या असर पड़ता है ? जोर से आवाजें लगाकर, नाम पुकार कर, हाथ-पांव हिलाकर, कहीं दर्द पैदा कर, मरीज की प्रतिक्रिया देखी जावे। क्या वह आँखें खोलता है, बोलता है, सही बोलता है, दर्द से अपने अंगों को भींचता है, बचाता है। लोगों की ओर देखता या रोता है। उसके हाथ पैरों की क्या स्थिति है ? वे या तो ढीले ढाले शिथिल हो सकते हैं या मिर्गी के समान सख्त व झटके वाले। मरीज का मूत्र व टट्टी पर नियंत्रण समाप्त होने से उसके कपडे गन्दे पाये जा सकते हैं। शरीर का रंग या तो सामान्य हो सकता है या नीला या सफेद। नीला रंग (सायनोसिस) आक्सीजन की कमी से तथा सफेद पीला पन खून या उसके दबाव की कमी से। शरीर का तापमान यदि ठंडा हो सदमें (शाक) की सम्भावना होगी और यदि तेज बुखार हो तो कोई इन्फेक्शन या लू लगना हो सकता है। कुछ लोग नाडी महसूस कर सकते हैं। श्वास की चाल और गहराई पर भी गौर किया जाता है। चोट या खून बहने के लक्षणों को ढूंढना चाहिये। जहरीले पदार्थ के सेवन की आशंका के लिये आस पास के सबूतों पर ध्यान देना पड़ता है।

मूर्च्छा से मिलती-जुलती अवस्थाएं

नींद - सबसे महत्वपूर्ण फर्क है कि सामान्य नींद से व्यक्ति को पूरी तरह जगाया जा सकता है। शरीर का रंग, तापमान, नाडी, श्वास सभी सामान्य रहते हैं। हिस्टीरिया - यह अवस्था अनेक बार देखने में आती है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति, किन्हीं मनोवैज्ञानिक कारणों से विभिन्न बीमारियों के नकलची लक्षण पैदा कर सकता है। मूर्च्छा भी इस अवस्था के स्वरूपों में से एक है। इस प्रकार की मिमिक्री जान-बूझ कर नहीं की जाती। मनोवैज्ञानिक/मन को उलझनों की वजह से स्वतः ही ऐसे लक्षण पैदा हो जाते हैं जबकि सम्बद्ध बीमारी मौजूद नहीं होती। डॉक्टरो के लिये भी कई बार हिस्टीरिया वाली मूर्च्छा का निदान मुश्किल साबित होता है। इस अवस्था में या तो मरीज अजीब हरकतें कर सकता है या लम्बे समय तक चुप्पी साधकर आँखे बन्द रख सकता है। इसमें खतरे या चिन्ता की कोई बात नहीं होती।

मूच्छा आने के कारण

मूर्च्छा सिर्फ एक लक्षण है। सिम्प्टम है मूर्च्छा अपने आप में कोई एक बीमारी नहंी है बल्कि अनेक बीमारियों के प्रतीक रूप में प्रकट हो सकती है। बीमारियाँ चाहे जो हों, मूर्च्छा के लिये अन्तिम रूप से जिम्मेदार अंग है हमारा दिमाग या मस्तिष्क। यह दिमाग या मस्तिष्क ही तो है जिसमे चलते हम होशो-हवास कायम रखते हैं, चेतन रहते हैं। अलग-अलग कारणों से मस्तिष्क का काम गडबडा सकता है। दिमाग की स्वयं की बीमारियाँ और दिमाग के अलावा शरीर के अन्य अंग-तंत्रों (सिस्टम) की बीमारियाँ - दोनों से मूर्च्छा आ सकती है। दिमाग की स्वयं की बीमारियों के उदाहरण हैं- पक्षाघात या पेरेलिसिस का बड़ा अटैक जिसमें मस्तिष्क के बहुत बड़े या खास संवेदनशील हिस्से के खून की सप्लाय में रुकावट आ जाती है। ब्रेन हेमरेज यानी दिमाग में खून की नली का फट जाना दिमाग में इन्फेक्शन - जैसे मेनिन्जाईटिस व एनसेफेलाईटिस। मिर्गी का दौरा। सिर की चोट। अन्य अंगों की बीमारियाँ जो अप्रत्यक्ष रूप से मस्तिष्क पर असर डाल कर मूर्च्छा पैदा कर सकती है उनके उदाहरण हैं- जहरीली दवाईयों का उपयोग, आक्सीजन की कमी-दम घुटना, बन्द कमरा, पानी में डूबना, धुंआ या जहरीली गैस। शरीर में ढेर सारा खून बह जाना (हेमरेज) चोट लगना, ब्लड प्रेशर कम हो जाना। हृदय रूपी पम्प के काम में रुकावट - हार्ट फैल्युअर। दिल की चाल में अनियमितता। दिल का दौरा। डायबिटीज की बिगडी अवस्था। जिगर या लीवर का फेल जो जाना। तेज बुखार वाला सन्निपात। मूर्च्छा के कारण चाहे जो हों, कुछ निश्चित उपाय प्राथमिक चिकित्सा के रूप में किये जा सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है धैर्य बनाये रखना। मूर्च्छित व्यक्ति को देखकर स्वयं घबरा जाना तो होशो हवास खो बैठने के बराबर होगा। हर मूर्च्छा खतरनाक नहीं होती। अनेक बार उसकी अवधि बहुत छोटी होती है व मरीज स्वयं होश में आ जाता है। हिस्टीरिया वाली मूर्च्छा बिल्कुल ही खतरनाक नहीं होती। मूर्च्छित व्यक्ति को खुली हवा में रखना चाहिये यदि वह बन्द घुटते हुए वातावरण में पाया गया हो तो। किसी अंग से खून बह रहा हो तो उसे रोकने के प्रयास किये जा सकते हैं। तापमान (बुखार) बहुत तेज हो तो ठंडे पानी में भिगोए गए कपडों से शरीर गीला रखा जाता है। श्वास के रास्ते में रुकावट दूर करना मुख्य बात है। मरीज का स्वयं का थूक, कफ या उल्टी उसके गले में जमा हो कर सांस की नली का रास्ता रोकते हैं। गला साफ करना जरूरी है। साफ धुले कपडे से ऊंगली के सहारे। मरीज को करवट से या पेट के बल लिटाकर, उसके बिस्तर का सिरहाना, पैरों की अपेक्षा नीचले स्तर पर कर देना चाहिये। अर्थात्‌ पैरों वाली साईड के नीचे ईंटें लगाई जा सकती हैं। दिल व श्वास रूक जाने पर कुछ जानकार लोग दिल की मालिश व मुंह से सांस देने का प्रयत्न कर सकते हैं। जहर लेने की आशंका में कोशिश करके उल्टी करवाना कभी-कभी उपयोगी होता है और अन्त में मरीज को जल्दी से जल्दी किसी अस्पताल में पहुंचाना चाहिये। मूर्च्छा दिखती मृत्यु के समान है परन्तु यही क्या कम है कि इन्सान अपने प्रयत्नों से मौत के जबडों से भी एक बार/अनेक बार बच जाते हैं।