विशालाक्षी शक्तिपीठ

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मणिकर्णिका घाट

विशालाक्षी शक्तिपीठ हिन्दू धर्म के प्रसिद्द 51 शक्तिपीठों में एक है। यहां देवी सती के मणिकर्णिका गिरने पर इस शक्तिपीठ की स्थापना हुई।

स्थिति

यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर में काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर पतित पावनी गंगा के तट पर स्थित मीरघाट( मणिकर्णिका घाट) पर है। वाराणसी का प्राचीन नाम काशी है। काशी प्राचीन भारत की सांस्कृतिक एवम पुरातत्व की धरोहर है।काशी या वाराणसी हिंदुओं की सात पवित्र पुरियों में से एक है। देवी पुराण में काशी के विशालाक्षी मंदिर का उल्लेख मिलता है।

पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये।इन शक्तिपीठों मे पुर्णागिरि, कामाख्या असम,महाकाली कलकत्ता,ज्वालामुखी कांगड़ा,शाकम्भरी सहारनपुर, हिंगलाज कराची आदि प्रमुख है ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। कहा यह भी जाता है कि जब भगवान शिव वियोगी होकर सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर रखकर इधर-उधर घूम रहे थे, तब भगवती के दाहिने कान की मणि इसी स्थान पर गिरी थी। इसलिए इस जगह को 'मणिकर्णिका घाट' भी कहते हैं। कहा यह भी जाता है कि जब भगवान शिव वियोगी होकर सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर रखकर इधर-उधर घूम रहे थे, तब भगवती का कर्ण कुण्डल इसी स्थान पर गिरा था।

विशालाक्षी पीठ

देवी के सिद्ध स्थानों में काशी में मात्र विशालाक्षी का वर्णन मिलता है तथा एक मात्र विशालाक्षी पीठ का उल्लेख काशी में किया गया है। दक्षिण भारतीय शैली में स्थापत्य माँ विशालाक्षी की मूर्ति स्वयं ही देदिप्तमान आभा प्रसारित करती हैं। बहुत कम यात्रियों का यहाँ तक पहुँचना हो पाता है,जरूरत है मंदिर के बारे में प्रचार प्रसार की ।

  • अविमुक्ते विशालाक्षी महाभागा महालये।[१]

तथा

  • वारणस्यां विशालाक्षी गौरीमुख निवासिनी[२]

सन्दर्भ

  1. देवी भागवत 7/38/27
  2. देवी भागवत7/30/55