शास्त्रोक्त हिन्दू विधि

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शास्त्रोक्त हिन्दू विधि (Classical Hindu law), धर्म की ही एक श्रेणी है जो वेदों से लेकर १७७२ तक के दीर्घकाल में फैली हुई है। १७७२ में बंगाल सरकार ने 'बंगाल में न्यायव्यवस्था की योजना' (A Plan for the Administration of Justice in Bengal) प्रस्तुत किया था। १७७२ के पूर्व हिन्दू समाज में कानून, धर्मशास्त्रों पर आधारित थे। तथापि, प्राचीन हिन्दू विधि भी विभिन्नता थी तथा वह स्थान, समूह, आदि के साथ अलग-अलग हुआ करती थी।

प्राचीन हिन्दू विधि, मनुस्मृति तथा अन्य स्मृतियों में लिपिबद्ध है, किन्तु न्यालयों के वास्तविक अभिलेख प्रायः दुर्लभ हैं।

परिभाषा

हैनरी मेन के अनुसार, हिंदू विधि स्मृतियों की विधि है जो संस्कृत भाष्यों एवं निबंधों में विस्तार रूप से लिखित है तथा जिसे न्यायालयों द्वारा मान्य रीतियों एवं प्रथाओं द्वारा संशोधन तथा परिवर्धन किया गया है ।

सामान्यतया हिंदू विधि से देश की प्रथात्मक विधि का संबोधन नहीं होता, जैसे इंग्लैंड में सामान्य विधि से संबोधित होता है । यह राजाओं द्वारा निर्मित विधि नहीं है जो प्रजा के ऊपर लागू होती है। हिंदू विधि का अर्थ अनेक संस्कृत ग्रंथों मैं बताए गए नियमों से है जो संस्कृत के विद्वानों द्वारा प्रमाणित ग्रंथ माने जाते हैं ।

हिंदू विधि किसी एक स्थान या प्रांत में लागू नहीं होती है । यह व्यक्तिगत विधि है ।

इस प्रकार जब एक हिंदू एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है तो अपने पुराने स्थान की रीति-रिवाजों एवं प्रथाओं से शासित होता है ना कि उस नए स्थान की रीतियों एवं प्रथाओं से ।

स्थान त्यागने वाले व्यक्ति को यह सुविधा प्राप्त है कि अपने मूल स्थान की विधि व लोक प्रथाओं का त्याग करके नए स्थान में प्रचलित विधि एवं लोक प्रथाओं को ग्रहण कर सके।

हिन्दू विधि की उत्पत्ति

ऐसा माना जाता है कि हिन्दू विधि की उत्पत्ति (उद्गम ) ईश्वर से होती है, ना की विधानमंडल, विधि या विधेयक से ।

  • यह एक कानूनी विधि नहीं बल्कि एक धार्मिक विधि है ।
  • हिंदू विधिशास्त्रियों ने विधि की व्याख्या समाज, धर्म एवं दर्शन के सन्दर्भ में की है ।
  • हिंदू शास्त्रों में विधि को संप्रभु अथवा राजा का आदेश नहीं माना गया है ।
  • आधुनिक यूरोपीय विधिशास्त्रियों के अनुसार, विधि वह आदेश है जिसे संप्रभु सत्तासंपन्न, किसी राजनैतिक समाज में, उस समाज के सदस्यों या व्यक्तियों पर आरोपित करता है।

हिंदू विधि की उत्पत्ति मूल रूप से दो सिद्धान्तों पर हैं जो दुनिया के सबसे पुराने कानून की उत्पत्ति से संबंधित है।

  • (१) ईश्वरीय सिद्धान्त,
  • (२) यूरोपीय या पश्चिमी सिद्धान्त ।

ईश्वरीय सिद्धान्त

इसके अनुसार हिंदू विधि की उत्पत्ति ईश्वरप्रदत्त है ।

  • हिंदू विधि पूर्णरूपेण एक प्रगतिशील विधि है । यह उतनी ही पुरानी है जितनी पुरानी मानवता है ।
  • हिंदू विधि ईश्वर प्रदत्त इसलिए मानी जाती है क्योंकि वेदों से प्राप्त हुई बताई जाती है । और वेदों को ईश्वरीय वाणी कहा जाता है ।
  • हिंदुओं का मानना है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने अपनी शक्ति का इतना विकास कर लिया था कि उनका सीधा संबंध ईश्वर से हो गया था और विधि को उन्होंने ईश्वर से ही प्राप्त किया है ।
  • इस सिद्धांत के अनुसार जो कानून की अवहेलना करता है वह ईश्वर की नाराजगी को भड़कायेगा और अगले जन्म में उसे भुगतना पड़ेगा ।

यूरोपीय या पश्चिमी सिद्धान्त

यूरोपीय व पश्चिमी न्याय शास्त्रियों के अनुसार हिंदू कानून ईश्वर प्रदत्त नहीं है, वरन बहुत प्राचीन रीति रिवाज है तथा प्रथाओं पर आधारित हैं जो ब्राह्मणधर्म के उदय से पहले से मौजूद है । जब आर्य लोग भारत आए यहां पर बहुत सी प्रथाएं व रुढ़िया प्रचलित थीं जो या तो उनकी प्रथाओं या रीति-रिवाजों से पूरी तरह मेल खाती थी या थोड़ी बहुत मेल खाती थी । उन्होंने उन रूढ़ियों व प्रथाओं को पूर्ण रूप से त्याग दिया जिनको वे अपनी अनुरूप नहीं कर सकते थे और कुछ रूढ़ियों व प्रथाओं को अपनी आवश्यकता अनुसार परिवर्तित व संशोधित कर ग्रहण कर लिया। बाद में ब्राह्मणधर्म ने एक धार्मिक तत्व को कानूनी अवधारणाओं में पेश करके बर्तमान रीति-रिवाजों को संशोधित किया।

इन दोनों विचारों को हेनरी मेन ने खारिज कर दिया। उनका मत था की हिंदू विधि इस तरह के नियम और स्मृतियों ने खुदाई और कानून के अधिकारिक स्रोतों का गठन किया। वे राजाओं व शासकों द्वारा न्याय के प्रशासन में लागू किए गए थे। चुंकि ये टिप्पड़ियां शासकों के संरक्षण में लिखी गई थी इसलिए उनके अधिकार को स्वीकार कर लिया गया और वे आगे चलकर कानून के प्राथमिक स्रोत बन गए।

विधि के स्रोत

श्रुति

स्मृति

आचार

अत्मतुष्टि

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ