शिवमूर्ति

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शिवमूर्ति

हिन्दी कथाकार

व्यक्तिगत जीवन मूल निवास- सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) का एक अत्यंत पिछड़ा गांव कुरंग. कसाईबाड़ा, सिरी उपमा जोग, भरत नाट्यम्, तिरिया चरित्तर आदि प्रसिद्ध कहानियां. केशर कस्तूरी कथा संग्रह. त्रिशूल और तर्पण उपन्यास. कई कहानियों पर हिंदी साहित्य-जगत में बहस-मुबाहसे. कुछ कहानियां रंगमंच और सिनेमा का कथानक बनीं। कसाईबाड़ा पर पांच हजार से ज्यादा मंचन, इस पर फीचर फिल्म भी. तिरिया चरित्तर पर बासु चटर्जी की फिल्म. कई कहानियां देशी-विदेशी भाषाओं में अनूदित. नया उपन्यास-अंश 'आखिरी छलांग' नया ज्ञानोदय में प्रकाशित. 2002 में कथाक्रम सम्मान. सम्पर्कः 2/325, विकास खंड, गोमती नगर, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। हिंदी दिवस 14 सितंबर 2009 से ऑन लाइन 'हिंदी कथाकार' ब्लॉग के माध्यम से सुधी पाठक जगत में पहली दस्तक.

हिन्दी साहित्य

कहानी.....तर्पण

कहानी पर एक टिप्पणीकार के विचारः तर्पण भारतीय समाज में सहस्राब्दियों से शोषित, दलित और उत्पीड़ित समुदाय के प्रतिरोध एवं परिवर्तन की कथा है। इसमें एक तरफ कई-कई हजार वर्षों के दुःख, अभाव और अत्याचार का सनातन यथार्थ है तो दूसरी तरफ दलितों के स्वप्न, संघर्ष और मुक्ति चेतना की नई वास्तविकता। तर्पण में न तो दलित जीवन के चित्रण में भोगे गये यथार्थ की अतिशय भावुकता और अहंकार है, न ही अनुभव का अभाव। उत्कृष्ट रचनाशीलता के समस्त जरूरी उपकरणों से सम्पन्न तर्पण दलित यथार्थ को अचूक दृष्टिसम्पन्नता के साथ अभिव्यक्त करता है। गाँव में ब्राह्मण युवक चन्दर युवती रजपत्ती से बलात्कार की कोशिश करता है। रजपत्ती के साथ की अन्य स्त्रियों के विरोध के कारण वह सफल नहीं हो पाता। उसे भागना पड़ता है। लेकिन दलित, बलात्कार किये जाने की रिपोर्ट लिखते हैं। ‘झूठी रिपोर्ट’ के इस अर्द्धसत्य के जरिए शिवमूर्ति हिन्दू समाज की वर्णाश्रम व्यवस्था के घोर विखंडन का महासत्य प्रकट करते हैं। इस पृष्ठभूमि पर इतनी बेधकता, दक्षता और ईमान के साथ अन्य कोई रचना दुर्लभ है। समकालीन कथा साहित्य में शिवमूर्ति ग्रामीण वास्तविकता के सर्वाधिक समर्थ और विश्वनीय लेखकों में है। तर्पण इनकी क्षमताओं का शिखर है। रजपत्ती, भाईजी, मालकिन, धरमू पंडित जैसे अनेक चरित्रों के साथ अवध का एक गाँव अपनी पूरी सामाजिक, भौगोलिक संरचना के साथ यहाँ उपस्थित है। गाँव के लोग-बाग, प्रकृति, रीति-रिवाज, बोली-बानी-सब कुछ-शिवमूर्ति के जादू से जीवित-जाग्रत हो उठे हैं। इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि उत्तर भारत का गँवई अवध यहाँ धड़क रहा है। संक्षेप में कहें तो तर्पण ऐसी औपन्यासिक कृति है जिसमें मनु की सामाजिक व्यवस्था का अमोघ संधान किया गया है। एक भारी उथल-पुथल से भरा यह उपन्यास भारतीय समय और राजनीति में दलितों की नई करवट का सचेत, समर्थ और सफल आख्यान है।

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