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सूरत, गुजरात, ब्रिटिश भारत जन्म
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}} संजीव कुमार (मूल नाम : हरीभाई जरीवाला; जन्म: 9 जुलाई 1938, मृत्यु: 6 नवम्बर 1985) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। उनका पूरा नाम हरीभाई जरीवाला था। वे मूल रूप से गुजराती थे। इस महान कलाकार का नाम फ़िल्मजगत की आकाशगंगा में एक ऐसे धुव्रतारे की तरह याद किया जाता है जिनके बेमिसाल अभिनय से सुसज्जित फ़िल्मों की रोशनी से बॉलीवुड हमेशा जगमगाता रहेगा। उन्होंने नया दिन नयी रात फ़िल्म में नौ रोल किये थे। कोशिश फ़िल्म में उन्होंने गूँगे बहरे व्यक्ति का शानदार अभिनय किया था। शोले फ़िल्म में ठाकुर का चरित्र उनके अभिनय से अमर हो गया।
उन्हें श्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार के अलावा फ़िल्मफ़ेयर क सर्वश्रेष्ठ अभिनेता व सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार दिया गया। वे आजीवन कुँवारे रहे और मात्र 47 वर्ष की आयु में सन् 1985 में हृदय गति रुक जाने से मुम्बई में उनकी मृत्यु हो गयी। 1960 से 1984 तक पूरे पच्चीस साल तक वे लगातार फ़िल्मों में सक्रिय रहे।
उन्हें उनके शिष्ट व्यवहार व विशिष्ट अभिनय शैली के लिये फ़िल्मजगत में हमेशा याद किया जायेगा।
जीवन
संजीव कुमार का जन्म सूरत में 9 जुलाई 1938 को जेठालाल जरीवाला के एक मध्यमवर्गीय गुजराती वैश्य बनिया परिवार में हुआ था।[१] उनका जन्म का नाम हरिहर जरीवाला था किन्तु प्यार से सभी कुटुम्बी और सम्बन्धी उन्हें हरीभाई जरीवाला ही कहते थे। यद्यपि उनका पैतृक निवास सूरत में था परन्तु फ़िल्मजगत की चाह उन्हें मायानगरी मुंबई खींच लायी। यह शौक उन्हें बचपन से ही था।
फ़िल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखने वाले हरीभाई भारतीय फिल्म उद्योग में आकर संजीव कुमार हो गये। अपने जीवन के शुरूआती दौर में पहले वे रंगमंच से जुड़े परन्तु बाद में उन्होंने फ़िल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। इसी दौरान वर्ष 1960 में उन्हें फ़िल्मालय बैनर की फ़िल्म हम हिन्दुस्तानी में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक फ़िल्मों में अपने शानदार अभिनय से वे एक प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता बने।
संजीव कुमार ने विवाह नहीं किया परन्तु प्रेम कई बार किया था। उन्हें यह अन्धविश्वास था की इनके परिवार में बड़े पुत्र के 10 वर्ष का होने पर पिता की मृत्यु हो जाती है। इनके दादा, पिता और भाई सभी के साथ यह हो चुका था। संजीव कुमार ने अपने दिवंगत भाई के बेटे को गोद लिया और उसके दस वर्ष का होने पर उनकी मृत्यु हो गयी! संजीव कुमार लज़ीज भोजन के बहुत शौक़ीन थे।
बीस वर्ष की आयु में गरीब मध्यम वर्ग के इस युवा ने कभी भी छोटी भूमिकाओं से कोई परहेज नहीं किया। 'संघर्ष' फ़िल्म में दिलीप कुमार की बाँहों में दम तोड़ने का दृश्य इतना शानदार किया कि खुद दिलीप कुमार भी सकते में आ गये। स्टार कलाकार हो जाने के बावजूद भी उन्होंने कभी नखरे नहीं किये। उन्होने जया बच्चन के स्वसुर, प्रेमी, पिता और पति की भूमिकाएँ भी निभायीं। जब लेखक सलीम ख़ान ने इनसे त्रिशूल में अपने समकालीन अमिताभ बच्चन और शशि कपूर के पिता की भूमिका निभाने का आग्रह किया तो उन्होंने बेझिझक यह भूमिका स्वीकार कर ली और इतने शानदार ढँग से निभायी कि उन्हें ही केन्द्रीय करेक्टर मान लिया गया। हरीभाई ने बीस वर्ष की आयु में एक वृद्ध आदमी का ऐसा जीवन्त अभिनय किया था कि उसे देखकर पृथ्वीराज कपूर भी दंग रह गये।
फिल्मी सफर
संजीव कुमार ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत 1960 में हम हिन्दुस्तानी फ़िल्म में मात्र दो मिनट की छोटी-सी भूमिका से की। वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की आरती के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास नहीं हो सके। इसके बाद उन्हें कई बी-ग्रेड फ़िल्में मिली। इन महत्वहीन फ़िल्मों के बावजूद अपने अभिनय के जरिये उन्होंने सबका ध्यान आकर्षित किया। सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में संजीव कुमार को वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म निशान में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1960 से वर्ष 1968 तक संजीव कुमार फ़िल्म इण्डस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिये संघर्ष करते रहे। फ़िल्म हम हिन्दुस्तानी के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गये। इस बीच उन्होंने स्मगलर, पति-पत्नी, हुस्न और इश्क, बादल, नौनिहाल और गुनहगार जैसी कई फ़िल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।
वर्ष 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म शिकार में वह पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखायी दिये। यह फ़िल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेन्द्र पर केन्द्रित थी फिर भी संजीव कुमार धर्मेन्द्र जैसे अभिनेता की उपस्थिति में भी अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फ़िल्म में उनके दमदार अभिनय के लिये उन्हें सहायक अभिनेता का फ़िल्मफेयर अवार्ड भी मिला।
वर्ष 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म संघर्ष में उनके सामने हिन्दी फ़िल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन संजीव कुमार ने अपनी छोटी-सी भूमिका के बावजूद दर्शकों की वाहवाही लूट ली। इसके बाद आशीर्वाद, राजा और रंक, सत्यकाम और अनोखी रात जैसी फ़िल्मों में मिली कामयाबी से संजीव कुमार दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुँच गये जहाँ वे फ़िल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फ़िल्म खिलौना की जबर्दस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार ने बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1970 में ही प्रदर्शित फ़िल्म दस्तक में उनके लाजवाब अभिनय के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1972 में प्रदर्शित फ़िल्म कोशिश में उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला। फ़िल्म कोशिश में गूँगे की भूमिका निभाना किसी भी अभिनेता के लिये बहुत बड़ी चुनौती थी। बगैर संवाद बोले सिर्फ आँखों और चेहरे के भाव से दर्शकों को सब कुछ बता देना संजीव कुमार की अभिनय प्रतिभा का ऐसा उदाहरण था जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाये। इन्होंने दिलीप कुमार के साथ संघर्ष में काम किया। फ़िल्म खिलौना ने इन्हें स्टार का दर्जा दिलाया। इसके बाद इनकी हिट फ़िल्म सीता और गीता और मनचली प्रदर्शित हुईं। 70 के दशक में उन्होने गुलज़ार जैसे दिग्दर्शक के साथ काम किया। उन्होने गुलज़ार के साथ कुल 9 फ़िल्में कीं जिनमे आंधी (1975), मौसम (1975), अंगूर (1982), नमकीन (1982) प्रमुख है। इनके कुछ प्रशंसक इन फ़िल्मों को इनकी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मो में से मानते हैं। फ़िल्म शोले (1975) में उनके द्वारा अभिनीत पात्र ठाकुर आज भी लोगों के दिलों में ज़िन्दा है। जो मिमिक्री कलाकारों के लिये एक मसाला है। संजीव कुमार के दौर में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार जैसे अभिनेता छाये हुए थे, फिर भी अपने सशक्त अभिनय से उन सबके बीच काम करते हुए उन्होंने फ़िल्मजगत में अपना स्थान बनाया।
प्रमुख फिल्में
नामांकन और पुरस्कार
- 1977 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - अर्जुन पंडित
- 1976 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार - आँधी
फ़िल्म दस्तक और कोशिश के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
सन्दर्भ
साँचा:श्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार साँचा:फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार साँचा:फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार