इस्लामी सहयोग संगठन

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इस्लामी सहयोग संगठन (अंग्रेजी: Organisation of Islamic Cooperation (OIC) ; ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशन ) इस्लामी देशों के मध्य सभी विषयों में सहयोग को प्रोत्साहित करता है। जिसका औपचारिक नाम: ऑर्गेनाइजेशन डी ला को-ऑपरेशन इस्लामिक (फ़्रेंच)। मुख्यालय: जेद्दा, (सऊदी अरब) मेँ स्थित है तथा सदस्यता वाले देश: अफगानिस्तान, अल्बानिया, अल्जीरिया, अज़रबैजान, बहरीन, बांग्लादेश, बेनिन, ब्रूनेई, दार-ए- सलाम, बुर्किना फासो, कैमरून, चाड, कोमोरोस, आईवरी कोस्ट, जिबूती, मिस्र, गैबॉन, गाम्बिया, गिनी, गिनी-बिसाऊ, गुयाना, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, जार्डन, कजाखस्तान, कुवैत, किरगिज़स्तान, लेबनान, लीबिया, मलेशिया, मालदीव, माली, मॉरिटानिया, मोरक्को, मोजाम्बिक, नाइजर, नाइजीरिया, ओमान, पाकिस्तान, फिलिस्तीन, कतर, सऊदी अरब, सेनेगल, सियरा लिओन, सोमालिया, सूडान, सूरीनाम, सीरिया, ताजिकिस्तान, टोगो, ट्यूनीशिया, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, युगांडा, संयुक्त अरब अमीरात, उज्बेकिस्तान, यमन। और आधिकारिक भाषाएँ: अरबी, अंग्रेजी और फ्रांसीसी हैं।

विकास

इस्लामी सम्मलेन संगठन (Organisation of the Islamic Conference—OIC) विधिवत स्थापना 24 मुस्लिम देशों के राष्ट्राध्यक्षों द्वारा रबात (मोरक्को) में 1969 में सम्पन्न शिखर सम्मेलन और विदेश मन्त्रियों की 1970 में सम्पन्न बैठक के बाद मई 1971 में जेद्दा (सऊदी अरब) में हुई। ओआईसी के चार्टर को 1972 में अपनाया गया। आर्थिक सहयोग में मजबूती लाने के लिये 1981 में एक कार्य योजना को अपनाया गया। 1990 के दशक में इसकी सदस्यता में नियमित रूप से वृद्धि हुई। 28 जून, 2011 को अस्ताना (कजाखस्तान) में 38वीं विदेशमन्त्री परिषद (सीएमएम) बैठक के दौरान संगठन का नाम ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ द इस्लामिक कांफ्रेंस से बदलकर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशन किया गया।

उद्देश्य

  • 1972 में अपनाये गये चार्टर के आधार पर ओआईसी के उद्देश्य हैं- सदस्य देशों के मध्य आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इस्लामी एकजुटता को प्रोत्साहन देना तथा अन्तरराष्ट्रीय संगठनों से जुड़े सदस्यों के मध्य परामर्श की व्यवस्था करना;
  • किसी भी रूप में विद्यमान उपनिवेशवाद की समाप्ति तथा जातीय अलगाव और भेदभाव की समाप्ति के लिये प्रयास करना;
  • न्याय पर आधारित अन्तरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के विकास के लिये आवश्यक कदम उठाना; धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के प्रयासों में समन्वय स्थापित करना फिलिस्तीन संघर्ष को समर्थन तथा उनके अधिकारों और उनकी भूमि की वापसी में उन्हें सहायता देना;
  • विश्व के सभी मुसलमानों की गरिमा, स्वतन्त्रता और राष्ट्रीय अधिकारों की रक्षा करने के लिये उनके संघर्षों को मजबूती प्रदान करना, तथा; सदस्य देशों और अन्य देशों के मध्य सहयोग और तालमेल को प्रोत्साहित करने के लिये एक उपयुक्त वातावरण तैयार करना।

संरचना

ओआईसी संरचनात्मक रूप से कम संगठित है। इस्लामी देशों से संबद्ध महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करने के लिये प्रत्येक तीन वर्ष के अन्तराल पर राष्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन बुलाया जाता है। विदेश मन्त्रियों का सम्मेलन ओआईसी की प्रमुख संस्था है, जिसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं इसके प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं- संगठन की नीतियों की क्रियान्वित करना गैर- सदस्यीय देशों के साथ सम्बन्धों के लिये दिशा निर्देशों का निर्धारण करना और राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन के विचार के लिये रिपोर्ट तैयार करना इसके सचिवालय का प्रधान अधिकारी महासचिव होता है, जो विदेश मन्त्रियों के सम्मेलन के द्वारा चार वर्षों के लिये निर्वाचित होता है। सचिवालय सभी प्रकार के प्रशासनिक कार्य करता है तथा यह सांस्कृतिक, राजनीतिक और वितीय मण्डलों में विभक्त होता है। प्रत्येक मण्डल का प्रधान उप-महासचिव होता है। इसके अतिरिक्त संगठन के विशिष्ट कार्यों के निष्पादन के लिये अनेक विशेष निकाय स्थायी समितियाँ तथा अस्थायी समूह कार्यरत हैं।

गतिविधियाँ

ओआईसी ने अपना अधिकांश ध्यान सदस्य देशों के मध्य विवादों और युद्धों को सुलझाने पर केन्द्रित किया है। बार-बार उत्पन्न होने वाले इन तनावों, जिन पर अनेक सदस्यों का दृष्टिकोण कभी- कभी एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न होता है, ने ओआईसी के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में अवरोधक का कार्य किया है। फिलीस्तीन समस्या ओआईसी के लिये एक प्रमुख चिन्ता का विषय रहा है। ओआईसी फिलीस्तीन की स्वतन्त्रता में सहायता देने के लिये कृतसंकल्प है तथा युद्ध में अपहृत सभी क्षेत्रों से इजरायली सैनिकों की वापसी की माँग करता है। फिलीस्तीन मुद्दे पर, मिस्र, जो कि स्वयं एक सदस्य देश है, के साथ मतभेद उत्पन्न होते रहते हैं। मिस्र और इजरायल के मध्य हुई एक शान्ति सन्धि के बाद मिस्र को 1979 में संगठन से निलम्बित कर दिया गया। मिस्र पुनः 1984 में संगठन में वापस आया। 1980 के दशक में ओआईसी ने अफगानिस्तान से सोवियत सैनिकों की बिना शर्त और शीघ्र वापसी की माँग की। इस्लामी देशों, विशेषकर ईरान, पर पड़ रहे विदेशी दबावों के विरोध में तथा सोमालिया के विरुद्ध सशस्त्र आक्रमण की निंदा में अनेक प्रस्ताव भी पारित किए गए। 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध तथा 1990 के दशक के आरम्भ में खाड़ी युद्ध बहस के और मतभेद के भी महत्वपूर्ण मुद्दे थे। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों का पालन न करने के लिये इराक की भर्त्सना की गई। 1990 के दशक के आरम्भ तथा मध्य में बोस्निया-हर्जेगोविना विवाद और वहां की मुस्लिम जनता की त्रासदी ने ओआईसी का ध्यान अपनी ओर खींचा। ओआईसी ने बोस्नियाई मुस्लिमों पर सर्बियाई आक्रमणों को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा और अधिक हस्तक्षेप की माँग की तथा बोस्नियाई मुस्लिमों को और अधिक मानवीय तथा आर्थिक सहायता देने के लिये एक निधि का गठन किया।

सदस्य देश

साँचा:मुख्य

इस्लामिक सहयोग संगठन के भीतर कई बहुराष्ट्रीय संगठनों के बीच संबंधों को दिखाते हुए क्लिक करने योग्य एक युलर आरेख (ध्यान दें कि वर्तमान में सीरियाई गृहयुद्ध में मानवाधिकारों के दुरुपयोग के कारण इस आरेख में सीरिया को सभी संगठनों से निलंबित कर दिया गया है) इस्लामी सहयोग संगठन की 57 सदस्य हैं, जिनमें से 56 संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्य हैं। कुछ, विशेष रूप से पश्चिम अफ्रीका में हालांकि बड़ी मुस्लिम आबादी के साथ - जरूरी नहीं कि मुस्लिम बहुमत वाले देश। 7 देशों- आइवरी कोस्ट, गुयाना, मोजाम्बिक, नाइजीरिया, सूरीनाम, टोगो और यूगांडा मुस्लिम बहुमत नहीं हैं, लेकिन वे इस्लामी सहयोग संगठन के सदस्य हैं। कुछ मुस्लिम आबादी, जैसे रूस और थाईलैंड के कुछ देशों, ऑब्जर्वर राज्यों के रूप में बैठते हैं, जबकि भारत और इथियोपिया जैसे अन्य सदस्य नहीं है ओआईसी के सदस्य राज्यों की सामूहिक आबादी 2008 तक 1.6 बिलियन से अधिक है।

विदेशी मुद्दे

1980 से यह संगठन गैर इस्लामिक देशो के विरुद्ध अपने कुछ सदस्य देशो द्वारा फायदा उठाये जाने के कारण विवादित रहा है 1990 के दशक के अंत में इंडोनेशिया (पूर्वी तिमोर की स्वाधीनता के लिये) और अफगानिस्तान के संघर्ष ओआईसी की वार्तओं में उभरकर सामने आये। बढ़ता धार्मिक उग्रवाद ओआईसी की चिन्ता का एक अन्य विषय है। कैसब्लांका (मोरक्को) शिखर सम्मेलन, 1994 में इस्लामी उग्रवादी गुटों की गतिविधियों को समाप्त करने तथा विश्व में इस्लाम की हिंसात्मक होने की गलत छवि को मिटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय उग्रवाद से लड़ने के लिये आचार संहिता को अपनाया गया। 1995 में अपनी 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर ओआईसी ने संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य मध्यस्थ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में अधिक सहभागिता के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में इस्लामी देशों के लिये अधिक भूमिका की इच्छा व्यक्त की।

आर्थिक सहयोग

ओआईसी सदस्यों के बीच आर्थिक सहयोग की भी प्रोत्साहित करता है। इसमें आर्थिक रूप से पिछड़े सदस्यों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। सदस्यों को आपातकालीन अनुदान देने तथा इस्लामी अस्पतालों, स्कूलों, सांस्कृतिक केन्द्रों तथा विश्वविद्यालयों की सहायता देने के उद्देश्य से वर्ष 1974 में इस्लामी एकजुटता निधि के गठन में ओआईसी ने उल्लेखनीय भूमिका निभायी थी। मौद्रिक और वित्तीय सहायता को विकसित करने के लिये 1994 में इस्लामी विकास बैंक का गठन किया गया। इस्लामी व्यापार विकास केन्द्र ने 1983 में कैसब्लांका में कार्य करना शुरू किया। इसके अतिरिक्त, इस्लामी वाणिज्य और उद्योग मंडल भी कराची में कार्यरत है। ओआईसी अधिमान्य व्यापार व्यवस्था की 1991 में अनुमोदित किया गया, लेकिन यह अभी तक प्रभाव में नहीं आया है।

वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक

वैज्ञानिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में तथा सूचनाओं के प्रसार में सहयोग विकसित करने के लिये भी ओआईसी ने कदम उठाए हैं। संगठन ने इस उद्देश्य से अनेक केन्द्रों का गठन किया है, जिनमें कुछ प्रमुख केन्द्र हैं रबात स्थित इस्लामी शैक्षणिक, वैज्ञानिक और संस्कृतिक संगठन (आईईएससीओ); ढाका स्थित इस्लामी प्रौद्योगिकी संस्थान; जेद्दा- स्थित इस्लामी विज्ञान, तकनीक और विकास संस्थापन (आईएफएसटीएडी); अंकारा स्थित इस्लामी देशों के लिए सांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक अनुसंधान और प्रशिक्षण केन्द्र, तथा; जेद्दा स्थित अंतरराष्ट्रीय इस्लामी समाचार एजेंसी और इस्लामी राष्ट्र सूचना प्रसारण संगठन। ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) का संयुक्त राष्ट्र में एक स्थायी प्रतिनिधिमण्डल रहता है। जून 2008 में ओआईसी ने अपने चार्टर के औपचारिक संशोधन का आयोजन किया संशोधित चार्टर सभी सदस्य देशों में मानवाधिकार, मौलिक स्वतंत्रताएं, और सुशासन के अभिवर्द्धन का निर्धारण करेगा। संशोधन ने इस्लाम में मानवाधिकारों पर केरो घोषणा के प्रत्येक उल्लेख को हटा दिया है संशोधित चार्टर के अंतर्गत, ओआईसी ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और अंतरराष्ट्रीय कानून के समर्थन का चुनाव किया है। वर्ष 2005 में, मक्का के विशेष सम्मेलन में, नेताओं ने कार्यवाही के दस वर्षीय कार्यक्रम की स्वीकार किया संगठन के नाम में परिवर्तन का अनुमोदन किया और सुधार के तौर पर इसके चार्टर के संशोधन पर सहमति व्यक्त की। वर्ष 2008 में, डकार सम्मेलन में नए चार्टर को अपनाया गया। यूएनएचसीआर के अनुसार, ओआईसी देशों ने 2010 के अंत तक 18 मिलियन शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी। मई, 2012 में, अश्गाबाद (तुर्कमेनिस्तान) में शरणार्थियों की स्थिति पर विचार करने के लिए रिफ्यूजी इन द मुस्लिम वर्ल्ड नामक कांफ्रेंस आयोजित की।

भारत

भारत - पाकिस्तान विवाद इस संगठन में भी दिखता है। यद्यपि भारत में विश्व की मुस्लिम जनसंख्या का 12 प्रतिशत (183 मिलियन) रहती है, पाकिस्तान द्वारा ओआईसी में भारत की सदस्यता को रोका जा रहा है। महत्वपूर्ण मुस्लिम जनसंख्या वाले कुछ देश जैसे रूस एवं थाईलैंड पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं, जबकि भारत एवं इथियोपिया जैसे अन्य देश सदस्य नहीं हैं।

महासचिव

इस्लामी सहयोग संगठन का महासचिव[१]
No. नाम देश पद ग्रहण पद त्याग
1 तान्कू अब्दुल रहमान साँचा:Flag 1970 1974
2 हस्सान अल-ताहामी साँचा:Flag 1974 1975
3 अमादु करीम गाए साँचा:Flag 1975 1979
4 हबीबी चट्टी साँचा:Flag 1979 1984
5 सैयद शरीफद्दीन पीरजादा साँचा:Flag 1984 1988
6 हामीद अलगाबिद साँचा:Flag 1988 1996
7 अजद्दीन लाराकी साँचा:Flag 1996 2000
8 अब्देलउहैद बलकेजीज साँचा:Flag 2000 2004
9 इकमेलद्दीन इशानुगलू साँचा:Flag 2004 2014
10 इयाद इब्न अमीन मदनी साँचा:Flag 2014 2016
11 युस्सेफ बिन अल-ओट्टामीन साँचा:Flag 2016 कार्यरत

सन्दर्भ