ऋषभदेव

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साँचा:जैन तीर्थंकर

भगवान ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं।[१] तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। ऋषभदेव जी को आदिनाथ भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर हैं।[२][३][४][५]

जीवन चरित्र

जैन पुराणों के अनुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज के पुत्र ऋषभदेव हुये। भगवान ऋषभदेव का विवाह नन्दा और सुनन्दा से हुआ। ऋषभदेव के १०० पुत्र और दो पुत्रियाँ थी।[६]साँचा:Sfn उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े एवं प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। दूसरे पुत्र बाहुबली भी एक महान राजा एवं कामदेव पद से बिभूषित थे। इनके आलावा ऋषभदेव के वृषभसेन, अनन्तविजय, अनन्तवीर्य, अच्युत, वीर, वरवीर आदि 98 पुत्र तथा ब्राम्ही और सुन्दरी नामक दो पुत्रियां भी हुई, जिनको ऋषभदेव ने सर्वप्रथम युग के आरम्भ में क्रमश: लिपिविद्या (अक्षरविद्या) और अंकविद्या का ज्ञान दिया।साँचा:Sfn[७] बाहुबली और सुंदरी की माता का नाम सुनंदा था। भरत चक्रवर्ती, ब्रह्मी और अन्य ९८ पुत्रों की माता का नाम यशावती था। ऋषभदेव भगवान की आयु ८४ लाख पूर्व की थी जिसमें से २० लाख पूर्व कुमार अवस्था में व्यतीत हुआ और ६३ लाख पूर्व राजा की तरह|साँचा:Sfn

केवल ज्ञान

ऋषभदेव भगवान केवलज्ञान प्राप्ति के बाद

जैन ग्रंथो के अनुसार लगभग १००० वर्षो तक तप करने के पश्चात ऋषभदेव को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। ऋषभदेव भगवान के समवशरण में निम्नलिखित व्रती थे :साँचा:Sfn

  • ८४ गणधर
  • २२ हजार केवली
  • १२,७०० मुनि मन: पर्ययज्ञान ज्ञान से विभूषित साँचा:Sfn
  • ९,००० मुनि अवधी ज्ञान से
  • ४,७५० श्रुत केवली
  • २०,६०० ऋद्धि धारी मुनि
  • ३,५०,००० आर्यिका माता जी साँचा:Sfn
  • ३,००,००० श्रावक

हिन्दु ग्रन्थों में वर्णन

वैदिक दर्शन में, अथर्ववेद वा पुराणों कुछ ग्रंन्थो मे ऋषभदेव का वर्णन आता है |[८] वैदिक दर्शन में ऋषभदेव को विष्णु के 24 अवतारों में से एक के रूप में संस्तवन किया गया है।

भागवत में अर्हन् राजा के रूप में इनका विस्तृत वर्णन है। श्रीमद्भागवत् के पाँचवें स्कन्ध के अनुसार मनु के पुत्र प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध्र हुये जिनके पुत्र राजा नाभि (जैन धर्म में नाभिराय नाम से उल्लिखित) थे। राजा नाभि के पुत्र ऋषभदेव हुये जो कि महान प्रतापी सम्राट हुये। भागवत् पुराण अनुसार भगवान ऋषभदेव का विवाह इन्द्र की पुत्री जयन्ती से हुआ। इससे इनके सौ पुत्र उत्पन्न हुये। उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े एवं गुणवान थे ये भरत ही भारतवर्ष के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए;जिनके नाम से भारत का नाम भारत पड़ा |[९] उनसे छोटे कुशावर्त, इलावर्त, ब्रह्मावर्त, मलय, केतु, भद्रसेन, इन्द्रस्पृक, विदर्भ और कीकट ये नौ राजकुमार शेष नब्बे भाइयों से बड़े एवं श्रेष्ठ थे। उनसे छोटे कवि, हरि, अन्तरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रुमिल, चमस और करभाजन थे।

प्रतिमा

भगवान ऋषभदेव जी की एक ८४ फुट की विशाल प्रतिमा भारत में मध्य प्रदेश राज्य के बड़वानी जिले में बावनगजा नामक स्थान पर है और मांगीतुंगी (महाराष्ट्र ) में भी भगवान ऋषभदेव की 108 फुट की विशाल प्रतिमा है। उदयपुर जिले का एक प्रसिद्ध शहर भी ऋषभदेव नाम से विख्यात है जहां भगवान ऋषभदेव का एक विशाल मंदिर तीर्थ क्षेत्र विद्यमान हैं जिसमें ऋषभदेव भगवान की एक बहुत ही मनोहारी सुंदर मनोज्ञ और चमत्कारी प्रतिमा विराजमान है जिसे जैन के साथ भील आदिवासी लोग भी पूजते हैं।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. साँचा:Citation
  2. साँचा:Cite book
  3. साँचा:Cite book
  4. साँचा:Cite book
  5. साँचा:Cite book
  6. https://www.jainismknowledge.com/2020/05/rishabh-dev-ji.html
  7. आदिनाथपुराण और चौबीस तीर्थंकर-पुराण
  8. साँचा:Cite book
  9. श्रीमद्धभागवत पंचम स्कन्ध, चतुर्थ अध्याय, श्लोक ९


साँचा:तीर्थंकर