नियोग

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नियोग,मनुस्मृति के अलावा हिंदू जैन और बौद्ध साहित्य में में पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। उस में स्त्री की मर्जी होनी जरुरी हैं [१] यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत आचरण प्रायश्चित् के भागी होते हैं। हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए। हिंदू शास्त्रों के अलावा इस प्रथा का उल्लेख जैन और बौद्ध साहित्य मेंं इस सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए

बौद्ध एवं जैन मत में नियोग:

१. थेरीगाथा में एक परिश्रमी तथा योग्य स्त्री के तीन बार विवाह करने व तीनों बार पति के द्वारा त्याग किये जाने का उल्लेख है।

महागोविन्द जब भिक्षु बने तो उन्होंने अपनी चालीस पत्नियों से कहा कि आप लोग यदि चाहें तो अपने-अपने मातृकुल चली जायें और दूसरा पति ढूंढ लें। -थेरीगाथा ४१५, ५२१

२. राजा ने बोधिसत्व को तीनों ऋतुओं के लिये तीन महल बनवा दिए। उनमें एक नौ तल, दूसरा सात तल, तीसरा पांच तल का था। (वहां) ४४ हजार नाटक-करनेवाली स्त्रियों को नियुक्त किया। बोधिसत्व अप्सराओं के समुदाय से घिरे देवताओं की भांति, अलंकृत नटियों से परिवृत, स्त्रियों द्वारा बनाये गए वाद्यों से सेवन, महा-सम्पत्ति को उपभोग करते हुए, ऋतुओं के अनुकूल प्रासादों में विहार करते थे। -जातक कथा (निदान कथा)

३. ऋषिदासी भिक्षुणी का यह कथन देखिए-

'मेरा पति मेरा अपमान करने लगा। एतद्नन्तर, मेरे पिता ने एक अन्य कुल वाले धनाढ्य पुरुष से मेरा विवाह करा दिया। -थेरीगाथा पृ० १२६-२७

४. एक स्थूलमुनि ने कोशा वेश्या के साथ १२ वर्ष तक भोग किया और पश्चात् दीक्षा लेकर सद्गति को गया। -तत्त्वविवेक पृ० २२८

५. जैनियों के परमपूज्य १०८ मुनि श्री विवेकसागर जी के तीन पुत्र और चार पुत्रियां थीं जो द्वितीय पत्नी से उत्पन्न हुए। -(देखो उनका जीवनी)

इसके विरोध में जैन यह तर्क देते हैं-

पहली पत्नी के मृत्यु के पश्चात् दूसरा विवाहकर सन्तानोत्तपत्ति किया, अतः आक्षेप अनर्गल है।

प्रतिउत्तर-

१. जब ब्रह्मचारी थें, तो दूसरा विवाह कर सन्तानोत्पत्ति करने का विचार कैसे आया?

२. सन्तान भी उत्पन्न किया तो सात (७)। इसका अर्थ हम क्या समझें?

३. पहली पत्नी से सन्तान उत्पन्न क्यों नहीं हुआ? जबकि विवाह के चार वर्ष बाद देहावसान हुआ था।

नियम

नियोग प्रथा के नियम हैं:-

१. कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए।

२. नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका धर्म यही होगा कि वह उस औरत को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है।

३. इस प्रथा से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा, नियुक्त व्यक्ति का नहीं।

४. नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा।

५. इस प्रथा का दुरूपयोग न हो, इसलिए पुरुष अपने जीवन काल में केवल तीन बार नियोग का पालन कर सकता है।

६. इस कर्म को धर्म का पालन समझा जायेगा और इस कर्म को करते समय नियुक्त पुरुष और पत्नी के मन में केवल धर्म ही होना चाहिए, वासना और भोग-विलास नहीं। नियुक्त पुरुष धर्म और भगवान के नाम पर यह कर्म करेगा और पत्नी इसका पालन केवल अपने और अपने पति के लिए संतान पाने के लिए करेगी।

७. नियोग में शरीर पर घी का लेप लगा देते हैं ताकि पत्नी और नियुक्त पुरुष के मन में वासना जागृत न हो।

महाभारत में नियोग

महाभारत में धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर नियोग से पैदा हुए थे जिसमे ऋषि वेद व्यास नियुक्त पुरुष थे। बाद में, पाण्डु संतान देने में असमर्थ होनके कारण, पाँचों पांडव नियोग से पैदा हुए थे जिसमे प्रत्येक नियुक्त पुरुष अलग-अलग देवता थे।

कला और संस्कृति पर प्रभाव

मराठी फिल्म अनाहत नियोग प्रथा पर आधारित है जिसका निर्देशन अमोल पालेकर ने किया है। हिंदी फिल्म एकलव्य: द रॉयल गार्ड नियोग प्रथा पर आधारित है जिसमें अमिताभ बच्चन का पात्र अपने कर्तव्य और अपने नियोग से हुये लड़के (सैफ़ अली ख़ान) के बीच बंट जाता है।

१९८९ की फिल्म, ऊँच-नीच में एक संन्यासी (कुलभूषण खरबंदा) अपने गुरु के आदेश पर एक औरत से नियोग करता है।

सन्दर्भ