माधवदेव

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साँचा:Infobox Hindu leader साँचा:स्रोतहीन माधवदेव (असमिया:মাধৱদেৱ) असमिया भाषा के प्रसिद्ध कवि एवं शंकरदेव के शिष्य थे।

जीवनी

माधवदेव का जन्म असम के उत्तर लखीमपुर जनपद के अंतर्गत नारायणपुर के समीप हरिसिंगबरा के घर संवत् 1489 में हुआ। इनके पिता गोविंदागिरि रंगपुर जिले के वांडुका नामक स्थान में रहकर राजा का कार्य करते थे। यहीं से व्यापार के लिये वे पूर्व असम की ओर गए। देश में जब अकाल पड़ा, तो पुत्र और भार्या को साथ लेकर माधव के पिता अपने मित्रों के घर घूमते रहे किन्तु कहीं भी उन्हें आदर-सत्कार न मिला। घाघरि माजि के घर वे सपरिवार कई वर्षों तक रहे। इसके उपरान्त माधव की माता मनोरमा का उनके पिता ने दामाद के घर छोड़ दिया और स्वयं माधव के साथ वांडुका चले आए। माधव ने व्याकरण, भारत, पुराण, भागवत, न्याय, तर्कशास्त्र की शिक्षा राजेन्द्र अध्यापक द्वारा प्राप्त की। पिता के देहान्त के पश्चात् वे टेमुनि गए और वाणिज्य-व्यवसाय आरम्भ किया। यहीं एक सुन्दरी कन्या को उन्होंने अलंकार पहनाया।

माधव देवी के उपासक थे। बाद में जब शंकरदेव से निवृति तथा प्रवृति मार्ग पर वादविवाद हुआ तो माधव ने पराजय स्वीकार की तथा शंकरदेव की शरण ली। इसके उपरान्त माधव ने उपार्जित पैतृक सम्पत्ति और अलंकार पहनाई गई परिणीता कन्या का परित्याग किया तथा धर्म और गुरु के हित के लिये ब्रह्मचर्य व्रत लिया। गुरु के आज्ञानुसार इन्होंने कीर्तनघोषा ग्रंथ का संकलन पूर्ण किया और आजीवन एकशरण धर्म का प्रचार किया। माधव शंकरदेव के अभिन्न सहयोगी थे। उनकी दोनों तीर्थयात्राओं में वे उनके साथ रहे। 1596 ई0 में कूचबिहार में उनकी मृत्यु हुई।

रचनाएँ

माधव ने भक्तिरत्नावली और आदिकांड रामायण का रूपान्तर असमिया छन्दो में किया तथा नामघोषा की रचना की। उन्होंने दो सौ वरगीतों की रचना की जो संप्रदाय के नामसेवा प्रसंग में गाए जाते हैं। "जन्मरहस्य" में सृष्टि के निर्माण और विनाश की लीला वर्णित है। "राजसूय यज्ञ" उनकी एक लोकप्रिय कृति है जिसमें कृष्ण को सर्वश्रेष्ठ देव सिद्ध किया गया है। "अर्जुन भंजन", "चोरधरा", "पिपरा गुंचुवा", "भोजन विहार", और भूमिलाटोवा नाटकों में कृष्ण की बाललीला के विविध प्रसंग चित्रित हुए हैं। "रास झूमूरा"; भूषण हेरोवा, ब्रह्ममोहन और "कटोराखेलावा" उनकी अन्य रचनाएँ हैं। माधवदेव के गीतों की भाषा ब्रजावली है किन्तु वर्णनात्मक अंश असमिया में लिखे गए हैं। "नामघोषा" इनकी अत्यन्त महत्वपूर्ण कृति है जिसमें सम्पूर्ण शास्त्रों तथा अनुभूतियों का सार अन्तर्भुक्त किया गया है। इसमें एक सहस्र घोषाएँ हैं।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ