विद्या भारती
साँचा:आधारसाँचा:Infobox organization विद्या भारती , भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ी अशासकीय संस्था है। इसका पूरा नाम "विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान" है। इसकी स्थापना सन् 1977 में हुई थी।[१]
विद्या भारती के द्वारा लगभग हजारों से ज्यादा शिक्षा संस्थान का कार्य कर रहे हैं। विद्या भारती, शिक्षा के सभी स्तरों - प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च पर कार्य कर रही है। इसके अलावा यह शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान करती है। विद्या भारती का अपना शोध विभाग है। विद्या भारती के तहत, हजारों शिक्षण संस्थान संचालित होते है। विद्या भारती -शिशुवाटिका , सरस्वती शिशु मंदिर ,सरस्वती विद्या मंदिर , प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक, वरिष्ठ माध्यमिक, संस्कार केंद्र, एकल विद्यालय, पूर्ण एवं अर्द्ध आवासीय विद्यालय और महाविद्यालयों के छात्रों के लिए शिक्षा प्रदान करता है।[२]
भारत का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन
आज लक्षद्वीप और मिजोरम को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में 86 प्रांतीय एवं क्षेत्रीय समितियाँ विद्या भारती से संलग्न हैं। इनके अंतर्गत कुल मिलाकर 30,000 शिक्षण संस्थाओं में 9,00,000 शिक्षकों के मार्गदर्शन में 45 लाख छात्र-छात्राएं शिक्षा एवं संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। इनमें से 49 शिक्षक प्रशिक्षक संस्थान एवं महाविद्यालय, 2353 माध्यमिक एवं 923 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, 633 पूर्व प्राथमिक एवं 5312 प्राथमिक, 4164 उच्च प्राथमिक एवं 6127 एकल शिक्षक विद्यालय तथा 3679 संस्कार केंद्र हैं। आज नगरों और ग्रामों में, वनवासी और पर्वतीय क्षेत्रों में झुग्गी-झोंपड़ियों में, शिशु वाटिकाएं, शिशु मंदिर, विद्या मंदिर, सरस्वती विद्यालय, उच्चतर शिक्षा संस्थान, शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र और शोध संस्थान हैं। इन सरस्वती मंदिरों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और आज विद्या भारती भारत में सबसे बड़ा गैर सरकारी शिक्षा संगठन बन चुका है।[२]
इतिहास
1952 में संघ प्रेरणा से कुछ निष्ठावान लोग शिक्षा के पुनीत कार्य में जुटे। राष्ट्र निर्माण के इस कार्य में लगे लोगों ने नवोदित पीढ़ी को सुयोग्य शिक्षा और शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए "सरस्वती शिशु मंदिर" की आधारशिला गोरखपुर में पांच रुपये मासिक किराये के भवन में पक्की बाग़ में रखकर प्रथम शिशु मंदिर की स्थापना से श्रीगणेश किया। इससे पूर्व कुरुक्षेत्र मे गीता विद्यालय, की स्थापना 1946 में हो चुकी थी।
उत्तर प्रदेश में शिशु मंदिरों के संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी। इनके मार्गदर्शन एवं समुचित विकास के लिए 1958 में 'शिशु शिक्षा प्रबंध समिति' नाम से प्रदेश समिति का गठन किया गया। सरस्वती शिशु मंदिरों को सुशिक्षा एवं सद्संस्कारों के केन्द्रों के रूप में समाज में प्रतिष्ठा एवं लोकप्रियता प्राप्त होने लगी। अन्य प्रदेशों में भी जब विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी तो उन प्रदेशों में भी प्रदेश समितियों का गठन हुआ। पंजाब एवं चंडीगढ़ में सर्वहितकारी शिक्षा समिति, हरियाणा में हिन्दू शिक्षा समिति, असम में शिशु शिक्षा समिति[३] बनी। इसी प्रयत्न ने 1977 में अखिल भारतीय स्वरुप लिया और विद्या भारती संस्था का प्रादुर्भाव दिल्ली में हुआ। इसके बाद सभी प्रदेश समितियां विद्या भारती से सम्बद्ध हो गईं।
प्रांत समितियाँ
विद्या भारती की राज्यस्तरीय समितियों के अलग-अलग नाम हैं। ये नाम उन राज्यों के सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- दिल्ली: हिन्दू शिक्षा समिति दिल्ली, समर्थ शिक्षा समिति
- हरियाणा: हिन्दू शिक्षा समिति हरियाणा, ग्रामीण शिक्षा विकास समिति हरियाणा
- पंजाब: सर्व हितकारी शिक्षा समिति
- हिमाचल प्रदेशः हिमाचल शिक्षा समिति शिमला
- बिहार: भारती शिक्षा समिति बिहार, लोक शिक्षा समिति बिहार
- जम्मू: भारतीय शिक्षा समिति जम्मू कश्मीर
- मध्य प्रदेश: सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मध्य प्रदेश, ग्राम भारती शिक्षा समिति मध्यभारत, सरस्वती शिक्षा परिषद मध्य प्रदेश, केशव शिक्षा समिति महाकौशल, सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मालवा, ग्राम भारती शिक्षा समिति मालवा
- छत्तीसगढ़: सरस्वती शिक्षा संस्थान छत्तीसगढ़, सरस्वती ग्राम शिक्षा समिति छत्तीसगढ़
- झारखण्ड: वनांचल शिक्षा समिति, विद्या विकास समिति, शिशु शिक्षा विकास समिति
- ओड़ीसा : शिक्षा विकास समिति
- तेलंगण : श्री सरस्वती विद्यापीठम्[४]
- आन्ध्र प्रदेश : विद्या भारती आंध्रप्रदेश
- कर्नाटक : विद्या भारती कर्नाटक
- तमिलनाडु: विद्या भारती उत्तर तमिलनाडु, विद्या भारती दक्षिण तमिलनाडु
- केरल: भारतीय विद्या निकेतन[५]
- उत्तराखण्ड : भारतीय शिक्षा समिति उत्तरांचल, शिशु शिक्षा समिति उत्तरांचल, जन शिक्षा समिति उत्तरांचल
- उत्तर प्रदेश: भारतीय शिक्षा समिति पश्चिम उत्तर प्रदेश, शिशु शिक्षा समित पश्चिम उत्तर प्रदेश, जन शिक्षा समिति पश्चिम उत्तर प्रदेश, शिशु शिक्षा समिति ब्रज प्रदेश, भारतीय शिक्षा समिति ब्रज प्रदेश, जन शिक्षा समिति ब्रज प्रदेश, भारतीय श्री विद्या परिषद उत्तर प्रदेश, शिशु शिक्षा प्रबंध समिति उत्तर प्रदेश, भारतीय शिक्षा समिति उत्तर प्रदेश, भारतीय शिक्षा समिति पूर्वी उत्तर प्रदेश, भारतीय शिक्षा परिषद, जन शिक्षा समिति अवध प्रांत, भारतीय शिक्षा समिति कानपुर प्रांत, जन शिक्षा समिति कानपुर प्रांत, शिशु शिक्षा समिति गोरक्ष प्रांत, जन शिक्षा समिति गोरक्ष प्रांत, जन शिक्षा समिति काशी प्रांत
- असम: शिशु शिक्षा समिति असम[६][३], शिक्षा विकास परिषद दक्षिण असम[७]
- मेघालय : मेघालय शिक्षा समिति[८]
- नागालैंड : जनजाति शिक्षा समिति नाागालैंड[७]
- मणिपुर : शिक्षा विकास समिति मणिपुर[७]
- त्रिपुरा : विद्या भारती शिक्षा समिति त्रिपुरा[९]
- अरुणाचल प्रदेश : अरुणाचल शिक्षा विकास समिति[७]
- पश्चिम बंगाल : विवेकानंद विद्या odisha
- परिषद पश्चिम बंगाल, विद्या भारती उत्तर बंग
- अंडमान निकोबार: सरस्वती शिक्षा समिति
- सिक्किम: विद्या भारती सिक्किम
- महाराष्ट्र: विद्या भारती पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत, विद्या भारती कोंकण, विद्या भारती देवगिरी, विद्या भारती विदर्भ
- गोवा : विद्या भारती गोवा
- गुजरात : विद्या भारती गुजरात प्रदेश
- राजस्थान: विद्या भारती संस्थान जयपुर, विद्या भारती चित्तौड़, विद्या भारती शिक्षा संस्थान जोधपुर
केन्द्रीय विषय
- संस्कृत शिक्षा
- विज्ञान एवं तकनीकी
- शिशु वाटिका
- योग शिक्षा
- वैदिक गणित
- नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा
- कौशल विकास
- संगीत शिक्षा
- खेलकूद
- बालिका शिक्षा
- ग्रामीण शिक्षा
- प्रारम्भिक शिक्षा
- विद्वत परिषद
- जनजाति क्षेत्र की शिक्षा
- संस्कृति बोध परियोजना
- आचार्य प्रशिक्षण
- सेवा
- प्रचार विभाग
पंचपदी शिक्षण पद्धति
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार ”मनुष्य के भीतर समस्त ज्ञान अवस्थित है, जरूरत है उसे जागृत करने के लिए उपयुक्त वातावरण निर्मित करने की” शिक्षा की इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु विद्यालय में शिक्षण भारतीय मनोविज्ञान के सिध्दान्तो पर आधारित पंचपदी शिक्षा पद्दति के द्वारा किया है।
- अधीति – इसके अंतर्गत आचार्य निर्धारित विषय वास्तु को विधियों को अपनाते हुए छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं।
- बोध – कक्षा कक्ष में ही पठित विषय वास्तु का तात्कालिक लिखित, मौखिक और प्रायोगिक अभ्यास कराया जाता है, जिससे छात्रों को अपने अधिगम का ज्ञान होता है।
- अभ्यास – कक्षा कक्ष में सम्पन्न होने वाली अधीती और बोध की प्रक्रिया के पश्चात् छात्रो को विषय वास्तु का ज्ञान विस्तृत और स्थायी करने हेतु गृहकार्य दिया जाता है, जिसका विधिवत निरिक्षण और मूल्याङ्कन किया जाता है।
- प्रयोग (स्वाध्याय) – छात्र स्वप्रेरणा से अपने अनुसार कार्य करने में आनन्द अनुभव करता है, इसलिए विभिन्न विषयों से सम्बंधित विविध पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं आदि सामग्री का अध्ययन कराया जाता है।
- प्रसार - छात्र अपने अर्जित ज्ञान का विस्तार व प्रसार करते हैं।
प्रकाशित पत्रिकायें
इन्हें भी देखें
- सरस्वती शिशु मंदिर[१३]
- एकल विद्यालय[१४]
- पूर्वोत्तर जनजाति शिक्षा समिति[१५]
- विद्या भारती पूर्वोत्तर क्षेत्र[७]
बाहरी कड़ियाँ
- विद्या भारती का जालस्थल
- विद्या भारती पूर्वोत्तर क्षेत्र का जालस्थल
- 'राष्ट्रीय शिक्षा’ समाज प्रबोधन का जालस्थल
- विद्या भारती पूर्व छात्रों का जालस्थल
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:Citation
- ↑ २.० २.१ "Home | Vidya Bharti Akhil Bhartiya Shiksha Sansthan". vidyabharti.net. अभिगमन तिथि 2020-12-24.
- ↑ ३.० ३.१ साँचा:Citation
- ↑ "Sri Vidyaranya Avasa Vidyalayam". अभिगमन तिथि 2014-09-20.
- ↑ Bharatheeya Vidyanikethan the Kerala chapter of Vidya Bharathi Akhil Bharatheeya Siksha Sansthan "Vyasa Vidya Niketan - Our parent body".
- ↑ "www.sssassam.in". Shishu Shiksha Samiti Assam.
- ↑ ७.० ७.१ ७.२ ७.३ ७.४ साँचा:Citation
- ↑ "Meghalaya Shiksha Samiti – Affilitated to Vidya Bharati Akhil Bharatiya Shiksha Sansthan" (English में). अभिगमन तिथि 2020-10-22.साँचा:Dead link
- ↑ "Vidya Bharati Shiksha Samiti Tripura – Affilitated to Vidya Bharati Akhil Bharatiya Shiksha Sansthan" (English में). अभिगमन तिथि 2020-10-22.
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